Tuesday, July 31, 2018

सम्मोहन चिकित्सा क्या है, करने का तरीका और लाभ

सम्मोहन या हिपनोसिस या हिप्नोथेरेपी एक विशुद्ध मनोचिकित्सा प्रक्रिया है। सम्मोहन चिकित्सा के बारे में अक्सर आम लोगों में गलतफहमी देखी जाती है और वे इसे नकारात्मक रूप में ले लेते है। हालाँकि, मेडिकल शोधकर्ता लगातार ये पता लगाने का प्रयास कर रहे हैं कि कब और कैसे सम्मोहन को एक चिकित्सा उपकरण के रूप में उपयोग किया जा सकता है।

हिप्‍नोथेरेपी को हिंदी में सम्मोहन या सम्मोहन चिकित्सा कहा जाता है। सम्मोहन चिकित्सा एक हिप्नोथेरेपिस्ट की मदद से प्राप्त की गयी समाधि के जैसी एकाग्रता और फोकस की स्थिति है। इस स्थिति में व्यक्ति का अपने आतंरिक मन में ध्यान केंद्रित हो जाता है जिससे वह अपने मन के अंदर छिपे तरीकों को स्वयं के जीवन में परिवर्तन लाने और नियंत्रण के लिए उपयोग कर पाता है।

इस लेख में विस्तार से बताया गया है कि सम्मोहन चिकित्सा क्या है, सम्मोहन कैसे किया जाता है और सम्मोहन चिकित्सा के क्या फायदे और नुकसान हो सकते हैं।



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Monday, July 30, 2018

कुत्ते के काटने पर प्राथमिक उपचार

ऐसा कहा जाता है कि कुत्ते इंसानों के सबसे अच्छे दोस्त होते हैं, हालांकि उकसाए जाने पर ये इंसानों को काट भी लेते हैं। इनके काटने से इन्फेक्शन, रोग और अन्य समस्याएं हो सकती हैं।

कुत्ते के साइज़ और काटने की वजह के आधार पर उसका काटना कम या ज्यादा गंभीर हो सकता है। कुत्ता डर से या खुद को बचाने के लिए या पहले हुई किसी घटना की वजह से आपको काट सकता है।

कारण जो भी हो, कुत्ते के काटने के बाद आपको चिकित्सा अवश्य लेनी चाहिए। अगर कुत्ते के काटने से आपकी त्वचा छिल गई है, तो घाव को अच्छे से धोकर प्राथमिक चिकित्सा देना बहुत महत्वपूर्ण होता है।

इस लेख में कुत्ते के काटने पर फर्स्ट ऐड कैसे करें, सावधानियां और इंजेक्शन के बारे में बताया गया है।

(और पढ़ें - सांप के काटने पर प्राथमिक उपचार)



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सर्दियों के मौसम में जोड़ों के दर्द से हैं परेशान तो ये आयुर्वेदिक तेल करेंगे इसका समाधान

ज्यादातर सर्दियों में तापमान कम होने के कारण जोड़ों के दर्द सहित विभिन्न प्रकार की बिमारियों की समस्या होने लगती है। हालांकि इस स्थिति का इलाज करने के लिए बहुत सारी दवाइयां हैं। लेकिन दुष्प्रभावों के बिना आयुर्वेद में इन समस्याओं के लिए स्थायी इलाज है। तो चलिए जानते हैं सर्दियों के मौसम में दर्द से राहत पाने के लिए आप आयुर्वेदिक तेलों का उपयोग कैसे कर सकते हैं।

सर्दियों के मौसम में हवा, ठंड और शुष्कता के कारण वात दोशा की विशेषताएं बढ़ जाती हैं। इसलिए मौसम के प्रभाव के कारण विशेष रूप से जोड़ों में वात दोष की गतिविधिया बढ़ जाती हैं। वात बढ़ने के कारण हमारे जोड़ों में स्नेहन तरल पदार्थ अवशोषित होता है। इससे जोड़ों में दर्द, कठोरता और सूजन की समस्या हो जाती है।

आयुर्वेदिक चिकित्सा उन ऊतकों से छुटकारा दिलाती है जो ऊतकों में एम्बेडेड होती हैं, और साथ ही साथ रक्त परिसंचरण के लिए द्रव्यमान में मदद भी करती है। यह दर्द को कम करने में भी मदद करती है। गर्म तेल मालिश शरीर के लिए सुखदायक और कायाकल्प होता है और वात दोष के कारण हुए असंतुलन को कम करने में सहायता करता है। (और पढ़ें – गठिया या संधि शोथ का आयुर्वेदिक इलाज)

तो चलिए जानते हैं कौन से आयुर्वेदिक तेल हैं जो जोड़ों के दर्द से छुटकारा दिलाने में मदद करते हैं।

धन्वंतराम एक आयुर्वेदिक तेल जो शरीर में अतिरिक्त वात के कारण होने वाले जोड़ों के दर्द को कम करने में मदद करता है। यह रयूमेटाइड आर्थराइटिस (Rheumatoid Arthritis), अस्थिसंध्यार्ति या ऑस्टियो आर्थराइटिस (Osteoarthritis), स्पोंडिलोसिस (Spondilitis),  सिरदर्द और न्यूरो-पेशी की समस्याओं में भी मदद करता है। यह तेल बाला, यवा, कोला और कुलथा जैसी जड़ी बूटियों के संयोजन से बना है। इसका इस्तेमाल प्रतिदिन किया जा सकता है।

कोट्टम चुक्कड़ी तेल किसी व्यक्ति के शरीर में अत्यधिक वात के कारण होने वाले बीमारियों के इलाज के लिए भी प्रयोग किया जाता है। यह मुख्य रूप से जोड़ों में दर्द और सूजन को दूर करने के लिए प्रयोग किया जाता है और विशेष रूप से कटिस्नायुशूल (पीठ के निचले हिस्से), गठिया और स्पोंडिलोसिस से पीड़ित लोगों के लिए उपयोगी है। यह तेल अदरक, वासंबू, लहसुन, मारीआआ, सरसों, तिल का तेल, दही और इमली का रस जैसे सामग्री से बना है। यह तेल नियमित रूप से इस्तेमाल करने पर लम्बे समय तक राहत देने में मदद करता है। (और पढ़ें - लहसुन के फायदे)

पेंदा थाईलाम एक ठंडा तेल है जिसे आमतौर पर गठिया संबंधी विकारों के लिए बनाया गया है। यह जोड़ों में दर्द और सूजन से राहत देने के लिए अत्यंत प्रभावी है । विशेषकर इसे पित्त के उच्च स्तर वाले लोगों के लिए बनाया गया है। यह तेल हड्डियों के क्षरण को कम करने तथा गठिया और जोड़ों के रोगों की प्रगति को धीमा करने में मदद करता है।

वालिया नारायण तेल विलवा, अस्वगंधा, बृहती और तिल के बीज को मिला कर बनाया जाता है। यह तेल गठिया (Arthritis) के कारण जोड़ों के दर्द से राहत प्रदान करने में मदद करता है। यह शरीर में वात और पित्त के स्तर को संतुलित रखने में मदद करता है। साथ ही यह आंखों और तंत्रिका तंत्र से संबंधित विकारों के इलाज में भी उपयोगी है।



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दस्त रोकने के घरेलू उपाय

डायरिया पाचन तंत्र का एक सामान्य विकार है। ज्यादातर मामलों में इस विकार से पूरी तरह से ठीक होने में 2-3 दिनों का समय लगता है। अतिसार के कई कारण हो सकते हैं जिनमें वायरल या जीवाणु संक्रमण, अनुचित आहार, तनाव और पाचन तंत्र में समस्याएं शामिल हो सकती हैं। आपके शरीर से लगातार पानी और इलेक्ट्रोलाइट्स की हानि के कारण आपको मितली और सुस्ती का अनुभव हो सकता है। यदि आप बार बार शौचालय नहीं जाना चाहते हैं तो आप कुछ घरेलू उपचारो की मदद ले सकते हैं जो आपको आसानी से उपलब्ध हो सकते हैं। ये आपको डायरिया से राहत देंगे और इसका इलाज करेंगे -



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Sunday, July 29, 2018

बवासीर के लिए योग

पाइल्स, जिसे बवासीर या हेमोर्रोइड्स (Hemorrhoids) भी कहा जाता है, आजकल बहुत ही आम समस्या हो गयी है। यह महिलाओं व पुरुषों दोनो को ही हो सकती है और आम तौर से यह 20 से 50 वर्ष की आयु में होती है। आजकल की जीवनशैली में खानपान अनियमित हो गया है, जिसके कारण क़ब्ज़ आदि की समस्या रहती है। यही बवासीर के होने का मुख्य कारण है। बवासीर के कई और कारण भी हो सकते हैं जिनमें प्रमुख हैं वंशानुगत दशा, खानपान सही न होना, फाइबर की कमी, गूदे की कैविटी में असामान्य बढ़ोत्तरी, और लम्बे समय तक बैठे रहना। योग एक संपूर्ण व्यायाम है जो मन और शरीर दोनो को स्वस्थ रखता है। लेकिन क्या आपको पता है कि यह बवासीर के लिए भी काफी प्रभावी है? यहाँ हम कुछ आसान योग मुद्राओं के बारे में बताएँगे जो आपको बवासीर से छुटकारा दिलाने मे मदद करेंगी। इन्हे करिए और रोगमुक्त हो जाइए! ये योग आसन उचित आहार में परिवर्तन के साथ किया जाना चाहिए ताकि कब्ज और बवासीर से आराम मिले।



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ट्यूमर

ट्यूमर क्या होता है?

ट्यूमर असामान्य कोशिकाओं के समूह होते हैं जो गांठ के रूप में विकसित होते हैं। ये हमारे शरीर की अरबों कोशिकाओं में से किसी एक में शुरू हो सकते हैं। एक ट्यूमर, जिसे नियोप्लाज्म भी कहा जाता है, ऊतक का असामान्य द्रव्यमान है जो ठोस या द्रव से भरा हो सकता है।

(और पढ़ें - न्यूरोएंडोक्राइन ट्यूमर क्या है)

ट्यूमर होने का अर्थ यह नहीं है कि आपको कैंसर हो गया है। कुछ ट्यूमर कैंसर जरूर बन सकते हैं, लेकिन ज्यादातर ट्यूमर कोई परेशानी नहीं पैदा करते। इन्हे "बिनाइन" (Benign) कहते हैं, यानी "कैंसर रहित"।

बिनाइन ट्यूमर एक प्रकार की गांठ या सूजन है और यह आवश्यक रूप से स्वास्थ्य को खतरा पैदा नहीं करता है। यह कैंसर की तरह आस-पास के ऊतकों तक नहीं पहुँचता और न ही शरीर के अन्य हिस्सों में फैलता।

(और पढ़ें - विल्म्स ट्यूमर क्या है)

कैंसर रहित ट्यूमर कहीं भी बन सकते हैं। कई बार अपने शरीर में एक गांठ या द्रव्यमान, जिसे बाहर से महसूस किया जा सकता है, पाने पर लोग तुरंत यह मान लेते हैं कि यह कैंसर की गाँठ है। मिसाल के तौर पर, जिन महिलाओं को आत्म-परीक्षण के दौरान अपने स्तन में गांठ मिलती है वे अक्सर चिंतित हो जाती हैं। हालांकि, अधिकांश स्तन की गांठें मामूली होती हैं। वास्तव में, अधिकांश गांठें कैंसर रहित होती हैं।

(और पढ़ें - स्तन संक्रमण क्या है)

इलाज ट्यूमर की जगह और प्रकार पर निर्भर करता है और इसमें सर्जरी, कीमोथेरेपी, रेडियोथेरेपी या "टार्गेटेड ड्रग थेरेपी" शामिल है। बिनाइन ट्यूमर आमतौर पर ठीक होने के बाद वापस नहीं बढ़ते हैं।

(और पढ़ें - न्यूरोएंडोक्राइन ट्यूमर क्या है



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पसली में दर्द

परिचय

पसलियां वो घुमावदार हड्डियां होती हैं जो आपकी रीढ़ की हड्डी से आपकी छाती के चारों ओर जाती हैं। पसलियों का दर्द छाती में या उसके नीचे या नाभि के ऊपर महसूस हो सकता है।

(और पढ़ें - पसलियों में सूजन क्या है)

दिल, फेफड़े और कई महत्वपूर्ण अंग पसलियों के ढाँचे (Rib Cage) के अंदर संरक्षित रहते हैं। किसी गंभीर चोट के बाद उभरे पसलियों के दर्द की तुरंत चिकित्सा करवानी चाहिए, खासकर तब जब दर्द गंभीर हो या गहरी सांस लेने में कठिनाई हो। इसके परीक्षण के लिए एक्स रे, एमआरआई जैसे इमेजिंग टेस्ट की आवश्यकता होती है।

व्यायाम से पहले स्ट्रेचिंग एक्सरसाइज करके, उचित उपकरण का उपयोग करके और हाइड्रेटेड रह कर (शरीर में पानी की सही मात्रा होना) पसलियों की चोट से बचा जा सकता है।

मांसपेशियों में खिंचाव या जोड़ों के दर्द या सूजन के कारण होने वाले पसलियों के दर्द का इलाज आराम कर के और आसानी से उपलब्ध दर्द की दवाइयों से किया जा सकता है। उपचार मूल कारण को ध्यान में रख कर किया जाता है। इसमें दर्द से राहत देने वाली दवाएं और पर्याप्त आराम करना भी महत्वपूर्ण है।



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नमक की कमी

नमक की कमी क्या होती है?

नमक हमारे स्वास्थ्य के लिए अत्यंत आवश्यक पोषक तत्व है, फिर भी अक्सर हाई बीपी के डर से नमक के सेवन को कम करने की सलाह दी जाती है। यह एक गलत धारणा है कि हमें जितना संभव हो सके नमक का सेवन कम करना चाहिए।

(और पढ़ें - काले नमक के फायदे)

लोग "नमक" और "सोडियम" शब्दों का लगभग एक दूसरे के पर्यायवाची के रूप में उपयोग करते हैं। नमक सोडियम के समान नहीं है। नमक एक प्राकृतिक खनिज है जो क्रिस्टल जैसा दिखता है। इसमें दो तत्व होते हैं; सोडियम और क्लोरीन। नमक में ये दो तत्व लगभग 40% (सोडियम) और 60% (क्लोरीन) के अनुपात में होते हैं।

(और पढ़ें - सेंधा नमक के फायदे)

आपके द्वारा खाया गया नमक शरीर में सोडियम और क्लोराइड के घटकों में टूट जाता है। इसलिए जब कोई नमक की कमी के बारे में बात कर रहा होता है, तो वह आमतौर पर शरीर में सोडियम की कमी के कारण उत्प्न्न हुए लक्षणों से संबंधित होता है।

नमक की अत्यधिक कमी न केवल ब्लड प्रेशर को कम करती है बल्कि तंत्रिका कोशिकाओं की गतिविधि और दिल की मांसपेशियों और पाचन तंत्र में भी बाधा डालती है।

(और पढ़ें - लो बीपी का इलाज)

इसका परीक्षण लक्षणों, रक्त और मूत्र परीक्षणों के आधार पर किया जाता है। नमक की कमी का इलाज करना आसान है जिसमें अंतर्निहित कारणों (दवा और जीवनशैली में परिवर्तन) को संबोधित करने की आवश्यकता होती है। नमक की अत्यधिक कमी से मस्तिष्क की सूजन, कोमा और मौत भी हो सकती है।

(और पढ़ें - मस्तिष्क का संक्रमण क्या है)



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Saturday, July 28, 2018

कंधे के दर्द के घरेलू उपाय

नोट - गंभीर और क्रोनिक (लंबे समय से हो रहा) कंधे के दर्द के लिए अपने डॉक्टर से पूरी जांच और इलाज करवाएं; सिर्फ घरेलू नुस्खों पर न निर्भर करें। 

कंधे का दर्द किसी भी मांसपेशी, लिगामेंट या टेंडन्स और कंधे के आसपास में हो सकता है। जब एक बार आपका कंधा दर्द करने लगता है तो किसी भी दूसरे काम में ध्यान लगाना मुश्किल हो जाता है। कंधे में दर्द सभी उम्र के लोगों को होता है। हालाँकि जो लोग लैपटॉप, टेबलेट्स और स्मार्टफोन्स ज़्यादा समय तक के लिए इस्तेमाल करते हैं उन्हें ये समस्या बेहद ज़्यादा रहती है।  कई कारण और स्थिति कंधे के दर्द का कारण बनती हैं। सबसे आम कारण जैसे नरम ऊतकों या मांसपेशियों, टेंडन्स और लिगामेंट्स में चोट लगना। ये समस्या ज़्यादा वही कंधा इस्तेमाल करने से या वही बार बार चोट लगने से होती है।

तो आइये आपको बताते हैं कंधे के दर्द से छुटकारा पाने के कुछ घरेलू उपाय -



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हाई बीपी (उच्च रक्तचाप) का आयुर्वेदिक इलाज

चिकित्सा प्रणाली के अनुसार हमारी धमनियों में बहने वाले रक्त का एक निश्चित दबाव होता है। जब यह दबाव अधिक हो जाता है तो धमनियों पर दबाव बढ़ जाता है और इस स्थति को हाई बीपी (उच्च रक्तचाप) के रूप में जाना जाता है। हाई बीपी को अगर बिना उपचार के छोड़ दिया जाए तो यह दिल का दौरास्ट्रोकदिल की विफलता, गुर्दे की विफलता आदि के रूप में गंभीर स्वास्थ्य जटिलताओं का कारण बन सकता है। इसलिए यह बहुत महत्वपूर्ण है कि रक्तचाप का स्तर स्वस्थ सीमा के भीतर रहे। हमारी यह प्रकृति औषधीय जड़ी बूटियों से भरपूर है जो हमारे शरीर को रोग मुक्त रखने में मदद करती हैं। कई ऐसी जड़ी बूटी हैं जो सामान्य सीमा के भीतर हमारे रक्तचाप के स्तर को बनाए रखने में मदद कर सकती हैं। आइए ऐसी कुछ अच्छी आयुर्वेदिक जड़ी बूटियों के बारे में आपको बताते हैं -



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साइटिका का आयुर्वेदिक इलाज - Ayurvedic Treatment of Sciatica in Hindi

साइटिका आयुर्वेद में गृध्रसी के रूप में जाना जाता है, जो ख़राब पाचन के कारण होता है। एक दोषपूर्ण पाचन तंत्र विषाक्त पदार्थों (एएमए) के निर्माण का कारण बनता है जो शरीर की सूक्ष्म प्रणालियों में जमा होते हैं।

साइटिका के आयुर्वेदिक उपचार में पहले शोधन करने वाली जड़ी-बूटियां दी जाती है जो जहरीले तत्वों को खत्म करती हैं, इसके बाद पाचन के लिए उपयोगी जड़ी-बूटियों का उपयोग होता है जो सही पाचन को बहाल करती हैं। (और पढ़ें – पाचन क्रिया सुधारने के आयुर्वेदिक उपाय)

नर्वस सिस्टम को पोषण देने और शरीर की असंतुलित ऊर्जा को कम करने के लिए टोनिंग और शांतिदायक जड़ी बूटियां भी दी जाती हैं।

साइटिक तंत्रिका को शांत करने के लिए औषधीय तेलों का भी उपयोग किया जा सकता है। पंचकर्म मालिश से उपचार साइटिका के दर्द को कम करने में प्रभावी हो सकता हैं।

साइटिका के लिए कुछ आयुर्वेदिक जड़ी बूटियां निम्नलिखित हैं, जिनका उपयोग दर्द प्रबंधन के लिए किया जाता है:



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नपुंसकता (स्तंभन दोष) के लिए योग

नपुंसकता (स्तंभन दोष) भारत में एक आम समस्या है। ऐसा माना जाता है कि 40 से ऊपर की उम्र के 50% पुरुषों को कभी न कभी स्तंभन दोष का सामना करना पड़ता है। नपुंसकता के कारण हैं: हृदय रोग, हाई बीपी (उच्च रक्तचाप), और अत्यधिक धूम्रपान। नपुंसकता के उपचार के लिए बाजार में आज दवाइयां भी मौजूद हैं जैसे कि वियाग्रा

लेकिन वियाग्रा के उपयोग से सिर दर्द, पेट से सम्बंधित परेशानिया, और फ्लशिंग जैसे समस्याओं का सामना करना पड़ता है पर नपुंसकता से लड़ने के लिए वियाग्रा का सेवन ही एक मात्र विकल्प नहीं है। नपुंसकता से छुटकारा पाने के लिए व्यायाम या योग आपके लिए एक अच्छा विकल्प है। कई अध्ययनों से पता चला है कि योग और व्यायाम, नपुंसकता के रोकथाम और उपचार में मदद करते हैं। (और पढ़ें – सिर दर्द के घरेलु उपाय)



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Friday, July 27, 2018

गर्भावस्था में खून की कमी (एनीमिया)

जब महिलाएं गर्भवती होती हैं तो उनके एनीमिया से ग्रस्त होने की सम्भावना बढ़ जाती है। जब गर्भावस्था में एनीमिया होता है, तब रक्त में, ऊतकों और भ्रूण को ऑक्सीजन पहुंचाने के लिए पर्याप्त लाल रक्त कोशिकाओं (Red blood cells) में कमी आ जाती है।

गर्भावस्था के दौरान, शरीर स्वयं बच्चे के विकास के लिए अतिरिक्त रक्त बनाता है। लेकिन यदि उसे पर्याप्त मात्रा में आयरन और अन्य पोषक तत्व नहीं मिलते हैं, तो शरीर इस अतिरिक्त रक्त को बनाने के लिए आवश्यक लाल रक्त कोशिकाओं का उत्पादन नहीं कर पाता।

गर्भावस्था में हल्का एनीमिया होना सामान्य है। लेकिन कम आयरन और विटामिन के सेवन से या अन्य कारणों से यह अधिक गंभीर रूप ले सकता है।

एनीमिया के कारण थकान और कमज़ोरी महसूस होती है। यदि यह गंभीर है और इसका इलाज नहीं होता तो इसके कारण समय से पूर्व बच्चे के जन्म जैसी जटिलताएं उत्पन्न हो सकती हैं।

तो आइये जानते हैं गर्भावस्था में होने वाली खून की कमी के लक्षण, कारण, उपचार और इससे बचाव के उपाय। (और पढ़ें - प्रेगनेंसी में होने वाली समस्याएं और उनका समाधान)



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बिस्तर गीला करने से रोकने के घरेलू उपाय

शिशुओं और छोटे बच्चों में बेड पर मूत्र करने की बहुत आम समस्या है। यह एक ऐसी प्रक्रिया है जिसमे बच्चा नींद में अज्ञात रूप से मूत्र करने लगता है। छह साल की उम्र तक ये समस्या असामान्य नहीं है।

बच्चे मूत्र किसी उद्देश्य या कभी कभी आलस की वजह से भी नहीं करते हैं। यह अक्सर छोटे मूत्राशय, मूत्राशय की परिपक्वता में देरी, अत्यधिक मूत्र उत्पादन, मूत्र पथ में संक्रमण, तनाव, पुरानी कब्ज या हार्मोन असंतुलन के कारण होता है। कुछ बच्चों की नींद बहुत गहरी होती है जिस वजह से उनका मस्तिष्क उन्हें संकेत नहीं दे पाता कि उनका मूत्राशय भर चूका है। इसके अलावा, बिस्तर को गीला करने की समस्या अनुवांशिक भी होती है। बच्चे अक्सर अपनी उम्र से भी अधिक बिस्तर गीला करने लगते हैं। लेकिन ये स्थिति आपके बच्चे के लिए शर्मनाक हो सकती है वो भी तब जब वो किसी के साथ या किसी के घर में ऐसा कुछ कर रहा हो। (और पढ़ें - बिस्तर गीला करना)

आप अपने बच्चों की मदद हमारे द्वारा बताये जा रहे कुछ आसान और सरल प्राकृतिक घरेलू उपायों से ज़रूर करें -



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नवजात शिशु को कब्ज

शिशु के गंदे डायपर को बदलना एक सामान्य प्रक्रिया है और इससे यह भी पता चलता है कि आपके शिशु का पेट सही तरह से कार्य कर रहा है, लेकिन यदि पिछले कुछ दिनों से आपका शिशु डायपर को कम गंदा कर रहा हो या उसका मल कठोर हो, तो यह शिशु को कब्ज होने का संकेत होता है। शिशुओं में कब्ज के लक्षणों का पता लगा पाना बेहद ही मुश्किल होता।

इन सभी परेशानियों के चलते आपको इस लेख में एक साल से छोटे शिशुओं को होने वाली कब्ज के बारे में विस्तार से बताया जा रहा है। साथ ही इसमें आपको नवजात शिशु को कब्ज के लक्षण, नवजात शिशुओं को कब्ज के कारण, नवजात शिशु को कब्ज होने पर डॉक्टर के पास कब ले जाएं, नवजात शिशु की कब्ज का इलाज, नवजात शिशु का कब्ज से बचाव और नवजात शिशु के कब्ज की दवा आदि के बारे में भी बताया गया है।

(और पढ़ें - कब्ज दूर करने के घरेलू उपाय)



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करंट लगने पर क्या करें और फर्स्ट ऐड

घर में और बाहर होने वाली दुर्घटनाओं में करंट लगना एक बेहद आम दुर्घटना है। किसी व्यक्ति को करंट तब लगता है जब वह करंट या बिजली के संपर्क में आता है और करंट उसके शरीर से गुजरता है या पास होता है।

करंट का मतलब है किसी तार या उपकरण में से छोटे-छोटे कणों का प्रवाह होना। इन कणों को "इलेक्ट्रॉन्स" (Electrons) कहा जाता है। कुछ पदार्थों में से इलेक्ट्रॉन्स आसानी से पास होते हैं और कुछ में से नहीं होते। हमारे शरीर में से बिजली बहुत आसानी से पास होती है, इसीलिए हमें करंट से नुक्सान होता है और चोट लगती है।

करंट लगने से गंभीर नुकसान या चोट लग सकती है और मृत्यु भी हो सकती है।

इस लेख में करंट कैसे लगता है, करंट लगने पर क्या होता है और इसके प्राथमिक उपचार (फर्स्ट ऐड) के बारे में बताया गया है।



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करंट लगने पर क्या करें और फर्स्ट ऐड

घर में और बाहर होने वाली दुर्घटनाओं में करंट लगना एक बेहद आम दुर्घटना है। किसी व्यक्ति को करंट तब लगता है जब वह करंट या बिजली के संपर्क में आता है और करंट उसके शरीर से गुजरता है या पास होता है।

करंट का मतलब है किसी तार या उपकरण में से छोटे-छोटे कणों का प्रवाह होना। इन कणों को "इलेक्ट्रॉन्स" (Electrons) कहा जाता है। कुछ पदार्थों में से इलेक्ट्रॉन्स आसानी से पास होते हैं और कुछ में से नहीं होते। हमारे शरीर में से बिजली बहुत आसानी से पास होती है, इसीलिए हमें करंट से नुक्सान होता है और चोट लगती है।

करंट लगने से गंभीर नुकसान या चोट लग सकती है और मृत्यु भी हो सकती है।

इस लेख में करंट कैसे लगता है, करंट लगने पर क्या होता है और इसके प्राथमिक उपचार (फर्स्ट ऐड) के बारे में बताया गया है।



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गले में दर्द के घरेलू उपाय

गले में दर्द, गलकोष (pharynx) में सूजन की वजह से उत्पन्न होती है। ये ट्यूब मुँह के पीछे इसोफैगस (esophagus) तक फैली हुई होती है। इस स्थिति के कुछ प्रमुख कारण वायरल, बैक्टेरियल या फंगल संक्रमण, प्रदूषण, धूम्रपान, एसिड रिफ्लक्स, ज़्यादा चिल्लाना और कुछ एलर्जी से संबंधित समस्याएं आदि होती हैं। गले की सूजन के साथ साथ सर दर्द, पेट में दर्द, सर्दी जुकाम और गले में ग्रंथि की सूजन भी देखने को मिलते हैं।

गले में दर्द बहुत आम समस्या है जो आपके लिए असुविधाजनक हो सकती है। अगर आप किसी वजह से डॉक्टर के पास नहीं जा पा रहे हैं तो इन सरल और प्राकृतिक उपाय का प्रयोग कर सकते हैं जो आपके गले में दर्द और उसके लक्षणों को कम करने में मदद करेंगे -



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Thursday, July 26, 2018

नवजात शिशु को दस्त

नवजात शिशु को दस्त में पतला और बलगम युक्त मल आता है। यह आमतौर पर बैक्टीरियल संक्रमण, वायरल संक्रमण और कुछ खाद्य पदार्थों से होने वाली संवेदनशीलता के कारण होता है। अगर शिशु के शरीर में पानी की कमी (निर्जलीकरण) हो जाएं, तो उसके दस्त गंभीर स्थिति में पहुंच सकते हैं। निर्जलीकरण की वजह से दस्त होने पर आपको अपने शिशु को अस्पताल में भर्ती करने की जरूरत पड़ती है। लेकिन कुछ सावधानियों को अपनाकर आप अपने शिशु को दस्त और निर्जलीकरण से बचा सकती हैं।

इस लेख में आपको एक साल से कम आयु के शिशुओं को होने वाले दस्त के बारे में विस्तार से बताया गया है। साथ ही आप इस लेख में नवजात शिशु में दस्त के लक्षण, नवजात शिशु को दस्त होने के कारण, नवजात शिशु को दस्त में डॉक्टर के पास कब ले जाएं, नवजात शिशु के दस्त का इलाज और नवजात शिशु को दस्त से बचाव कैसे करें, आदि के बारे में भी बताया गया है।

(और पढ़ें - शिशु के लिए टीकाकरण चार्ट)



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सांप के काटने पर क्या करें

सांप जमीन, समुद्र, रेगिस्तान और जंगल जैसी जगहों पर पाए जाने वाले रेंगने वाले जंतु होते हैं। सांपों को बुरा माना जाता है, लेकिन सच तो ये है कि यह मनुष्यों से डरते हैं और बिना उकसाव या बिना किसी कारण उन्हें नहीं काटते।

सांप अधिकतर अपना शिकार पकड़ने के लिए या खुद को बचाने के लिए ही डसते हैं। जहरीले सांप काटने पर अपनी इच्छा से जहर छोड़ते हैं क्योंकि वे अपनी जहर छोड़ने की क्षमता और मात्रा को नियंत्रित कर सकते हैं। 50 से 70 प्रतिशत मामलों में सांप काटने पर अपना जहर छोड़ता है जबकि अन्य मामलों में ऐसा नहीं होता।

सांप के काटने के बाद चिकित्स्कीय इलाज लेना आवश्यक है, लेकिन मदद मिलने से पहले आप पीड़ित व्यक्ति को प्राथमिक चिकित्सा दे सकते हैं। अगर सांप डसने का इलाज सही समय पर हो तो पीड़ित व्यक्ति को ठीक होने में कम समय लगता है।

इस लेख में सांप के काटने का पता कैसे लगाएं और सांप के काटने पर क्या करना चाहिए व क्या नहीं के बारे में बताया गया है।



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महिला नसबंदी क्या है, लाभ और सावधानियां

महिला नसबंदी सबसे बेहतर और प्रभावी गर्भनिरोधक उपायों में से एक है। यह उपाय वे महिलाएं अपनाती है जो अपना परिवार पूरा कर चुकी है। महिला नसबंदी को अंग्रेजी में ट्यूबेक्टोमी या ट्यूबल लिगेशन या फीमेल स्टरलाइजेशन आदि नामों से जाना जाता है।

(और पढ़े - अनचाहे गर्भ से बचने के तरीके)

भारत में राष्ट्रीय स्वास्थय सर्वेक्षण के अनुसार 2005-06 में 15-49 के आयु वर्ग की 37 प्रतिशत शादीशुदा महिलाओं ने नसबंदी करवाई जो कुल उपयोग किये जाने वाले गर्भनिरोधक उपायों का 66 प्रतिशत हिस्सा था।

इस लेख में महिला नसबंदी के बारे में विस्तार से बताया गया है। इसमें बताया गया है कि महिला नसबंदी क्या है, कैसे होती है, महिला नसबंदी के बाद क्या सावधानी रखे, साथ ही यह भी बताया गया है कि महिला नसबंदी के फायदे और नुकसान क्या हो सकते हैं। लेख में सरकार की महिला नसबंदी योजना के बारे में भी बताया गया है।

(और पढ़ें - पुरुष नसबंदी)



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गर्भनिरोधक इंजेक्शन क्या है, प्रकार, लाभ और नुकसान

गर्भनिरोधक इंजेक्शन एक ऐसा इंजेक्शन है जिसमें या तो प्रोजेस्टिन (सिंथेटिक प्रोजेस्टोजेन) अकेले या फिर प्रोजेस्टिन और एस्ट्रोजन दोनों हार्मोन साथ में होते हैं, जो आपके शरीर को अंडे का उत्पादन करने से रोकते हैं और गर्भाशय की ग्रीवा में श्लेष्म (म्यूकस) को गाढ़ा करते है।

आपको इस इंजेक्शन का एक शॉट महीने में एक बार या फिर हर तीन महीनों में एक बार अपने डॉक्टर से लगवाना पड़ता है। हालाँकि एक बार लगा दिया तो फिर इंजेक्शन के प्रभाव को रोकना मुश्किल है।

गर्भनिरोधक इंजेक्शन का काम करने का तरीका गर्भनिरोधक गोली या गर्भनिरोधक रिंग की तरह ही है बस इसमें आपको रोज या हफ्ते में लेने की याद रखने की जरुरत नहीं होती है। हालाँकि जो महिलाएं इंजेक्शन से डरती हैं, उनके लिए यह अच्छा उपाय नहीं है।

(और पढ़े - गर्भ रोकने के उपाय)

इस लेख में विस्तार से बताया गया है कि गर्भनिरोधक इंजेक्शन क्या होता है, ये कैसे उपयोग किये जाते हैं। साथ ही गर्भनिरोधक इंजेक्शन के प्रकार और फायदे तथा लाभ के बारे में भी बताया गया है। आप यह भी जानेंगे कि गर्भनिरोधक इंजेक्शन की कीमत कितनी होती है।



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Wednesday, July 25, 2018

टेस्टोस्टेरोन की कमी

परिचय

टेस्टोस्टेरोन टेस्टिकल्स द्वारा उत्पादित एक हार्मोन है जिसका मुख्य कार्य पुरुषों के यौन अंगों व लक्षणों का विकास करना है। टेस्टोस्टेरोन मांसपेशी द्रव्यमान, लाल रक्त कोशिकाओं के पर्याप्त स्तर, स्मृति, हड्डियों के विकास, स्वस्थ होने की भावना और यौन कार्य को बनाए रखने के लिए भी महत्वपूर्ण है। यह शुक्राणु उत्पादन करने के साथ-साथ आदमी की कामेच्छा को भी बढ़ाता है।

(और पढ़ें - कामेच्छा बढ़ने के उपाय)



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Tuesday, July 24, 2018

बाबा से सीखें साइनस से छुटकारे के लिए योग

साइनसाइटिस की समस्या नाक में बहुत अधिक बलगम बढ़ जाने के कारण उत्पन्न होती है। इस समस्या के कारण नाक में पोलिप्स (polyps) बढ़ जाते हैं जिससे छुटकारा पाने के लिए सर्जरी तक करवानी पड़ सकती है। कभी कभी तो सर्जरी के बाद भी दुबारा पोलिप्स हो जाते हैं। साइनसाइटिस देखने में तो बहुत छोटी समस्या है पर यह बहुत ही खतरनाक होती है। नाक बंद होने के कारण हम शब्दों का उच्चारण भी सही ढंग से नहीं कर पाते हैं और हमें श्वास लेने में भी बहुत दिक्कत होने लगती है। इस समस्या का उपचार योग द्वारा किया जा सकता है। साइनस से छुटकारा पाने के लिए आपको नियमित रूप से भस्त्रिका, कपालभाती और अनुलोम-विलोम जैसे प्राणायाम करने चाहिए। (और पढ़ें - साइनस के लिए योग)

 

साइनसाइटिस के लिए करें भस्त्रिका प्राणायाम

  1. सबसे पहले सुखासन में बैठें। अब मेरुदंड, पीठ, गला तथा सिर को सीधा रखें और अपने शरीर को बिलकुल स्थिर रखें। 
  2. अब मुंह बंद कर लें। (और पढ़ें – भस्त्रिका प्राणायाम करने का तरीका और फायदे)
  3. इसके बाद दोनों नासिका छिद्रों (Nostrils) से आवाज करते हुए श्वास लें और आवाज करते हुए श्वास बाहर छोड़ें। 
  4. श्वास लेने और छोड़ने की गति तीव्र होनी चाहिए। 
  5. श्वास लेते समय पेट बाहर की तरफ निकलना चाहिए और श्वास छोड़ते समय पेट अन्दर खींचना है। 
  6. यह प्रक्रिया करते समय केवल पेट हिलना चाहिए और छाती स्थिर रहनी चाहिए। 
  7. इस तरह कम से कम 20 बार करें।

 

साइनसाइटिस के लिए करें कपालभाती प्राणायाम  

  1. सब से पहले आप जमीन पर बैठ जाएँ और बैठने के बाद अपने पेट को ढीला छोड़ दें। 
  2. अब अपने नाक से सांस को बाहर छोड़ें। सांस को बाहर छोड़ते समय पेट को अंदर की ओर धक्का दें। (और पढ़ें – कपालभाती करने का तरीका और फायदे)
  3. इस प्राणायाम में श्वास अंदर लेने की क्रिया करने की जरुरत नहीं है। इस प्राणायाम में श्वास अपने आप अंदर की तरफ आने लगती है। 
  4. इस प्राणायाम को प्रतिदिन लगातार 15 से 20 मिनट तक करने से नाक खुलने लगती है और साइनसाइटिस की समस्या से छुटकरा मिल जाता है। 

 

साइनसाइटिस के लिए करें अनुलोम-विलोम प्राणायाम 

  1. साइनसाइटिस की समस्या में शुरू में अनुलोम-विलोम प्राणायाम करने पर थोड़ी परशानी होगी लेकिन इस प्राणायाम को लगातार करने से बहुत लाभ मिलेगा। 
  2. अनुलोम-विलोम करने से पहले पद्मासन में बैठ जाएँ। 
  3. अब अपनी आँखों को बंद कर लें। (और पढ़ें – अनुलोम-विलोम प्राणायाम करने का तरीका और फायदे)
  4. अब बाए हथेली को बाए घुटने पर रखें।
  5. प्रथम सांस बाहर निकालकर नासाग्र मुद्रा बनाएं। 
  6. दाएं हाथ के अंगूठे से एक तरफ की नाक को दबा कर छिद्र को बंद करें। 
  7. अंगूठे के पास वाली दोनों अंगुलियां तर्जनी और मध्यमा को भ्रूमध्य में रखें।
  8. अब बाए छिद्र से सांस खीचें, इसके पश्चात बाए छिद्र को अनामिका अंगुली से बंद करें और दाए छिद्र से अंगूठा हटाकर साँस छोड़ें।
  9. अब इसी प्रक्रिया को प्रतिदिन 15 से 20 मिनिट तक करें। इससे आपको साइनस की समस्या से छुटकरा मिल जायगा। 

 

साइनसाइटिस के लिए करें ये घरेलु उपचार 

यदि आपका कफ जायदा बढ़ गया है तो इसके लिए 100 ग्राम बादाम, 20 ग्राम काली मिर्च और 50 ग्राम खांड़ को मिलाकर पाउडर बना लें। इस पाउडर का एक चम्मच रात को गर्म दूध के साथ लें। इससे साइनस की समस्या में तुरंत लाभ मिलता है। 

साइनस की समस्या से छुटकारा पाने के लिए सोंठ, पिप्पली और काली मिर्च के बराबर मात्रा में मिला कर पाउडर बना लें। इस पाउडर का 1 ग्राम प्रतिदिन शहद के साथ सेवन करने से लाभ मिलता है (और पढ़ें - शहद खाने के फायदे)

 

साइनसाइटिस हो तो करें ये परहेज

सावधानियां: साइनस की समस्या में भुनी, तली चीजों का सेवन नहीं करना चाहिए और ठंडा पानी पीने से भी बचें।  (और पढ़ें –  साइनस के बचाव के उपाय)

 



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नाक से खून आने (नकसीर फूटने) पर क्या करें

नाक से खून आना या नकसीर फूटना हम सब के साथ कभी न कभी हुआ ही है। ऐसा तब होता है जब नाक की अंदर की सतह में मौजूद कोई रक्त वाहिका फट जाती है। नाक की दोनों नलिकाओं को विभाजित करने वाले ऊतक (Septum: सेप्टम) में छोटी-छोटी रक्त वाहिकाएं होती हैं जो बहुत नाजुक होती हैं। यह रक्त वाहिकाएं आसानी से फट सकती हैं, जिससे नाक से खून आने लगता है।

(और पढ़ें - नाक की हड्डी टेढ़ी होना)

यह संक्रमणचोटएलर्जी, नाक में उंगली या कोई और वस्तु डालने के कारण भी हो सकता है। 

नकसीर फटना डराने वाली स्थिति हो सकती है, लेकिन अक्सर इसका कोई गंभीर कारण या प्रभाव नहीं होता है और यह आसानी से घर पर ही ठीक की जा सकती है। बच्चों में यह स्थिति अधिक आम है।

(और पढ़ें - प्राथमिक चिकित्सा क्या है)

अगर बार-बार नाक से खून आता है या काफी देर तक आता रहता है, तो डॉक्टर  के पास जाएं। इस लेख में नाक से खून आने या नकसीर फटने पर किए जाने वाले प्राथमिक उपचार के बारे में बताया गया है।



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बाबा के योग से दूर करें खून की कमी

क्या आप एनीमिया यानि खून की कमी से पीड़ित है? ये सवाल तो अब हर किसी से पूछा जा सकता है क्यूंकि जिस तरह से हम खानपान कर रहें हैं उसे देखकर ये नहीं लगता कि किसी में 11 से ऊपर हीमोग्लोबिन होगा (हीमोग्लोबिन की नॉर्मल रेंज 13.5 से 17.5 होती है)। ज़्यादातर ये परेशानी महिलाओं में देखी जाती हैं। कितना भी वो खालें लेकिन खून की बजाए उनका वज़न बढ़ने लगता है। बाबा के अनुसार खून की कमी को पूरा करने के लिए हमे रोज़ाना प्राणायाम करना चाहिए और हर सब्ज़ियों का सेवन करना चाहिए। बाबा का मानना है कि आप जितनी भी सब्ज़ियों का सेवन कर लें जब तक उनमे सम्पूर्ण रूप से प्रोटीन, विटामिन, आयरन, खनिज आदि नहीं होंगे तब तक आप खून की कमी को नहीं बड़ा सकते।

हीमोग्लोबिन का काम शरीर के चारों ओर ऑक्सीजन ले जाने का होता है। यदि आपके पास कम या असामान्य लाल रक्त कोशिकाएं हो या आपका हीमोग्लोबिन कम या असामान्य हो तो आपके शरीर को पर्याप्त ऑक्सीजन नहीं मिलेगा। तब आपके फेफड़ो और दिल को रक्त से ऑक्सीजन प्राप्त करने के लिए कड़ी मेहनत करनी पड़ेगी।

बाबा के अनुसार उचित भोजन, सही उपचार और आसन एवं प्राणायाम के अभ्यास ने हीमोग्लोबिन को बढ़ाने में मदद की है। एनीमिया की कमी को दूर करने के लिए ज़रूरी सबसे ज़रूरी है रोज़ प्राणायाम और योग करना। खून को बढ़ाने के लिए करें कपालभाति प्राणायाम, त्रिकोणासन, सर्वांगासन, धनुरासन, अनुलोम विलोम प्राणायाम। इनसे आपके खून का संचार बढ़ेगा और हीमोग्लोबिन बढ़ने में मदद होगी। बाबा के अनुसार खाने में हमेशा हरी सब्ज़िया लें जैसे पालक, मेथी, फूलगोभी, पत्ता गोबी आदि खाएं इनसे आपके खून का स्तर बढ़ेगा और किसी भी बीमारी से लड़ने में आप सक्षम होंगे।

आइए सुनें उनको इस वीडियो में - 

 



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माँ का दूध कैसे बढ़ाएं, उपाय और तरीके

हर महिला अपने बच्चे की देखभाल अच्छे से करना चाहती है और अगर बात नवजात शिशु की हो तो देखभाल और चिंता दोनों बढ़ जाती है। जैसा कि आप जानती हैं, नवजात शिशु कुछ शुरूआती महीनों तक सिर्फ स्तनपान करता है। इसी पर उसका विकास और वृद्धि निर्भर होती है। लेकिन अगर माँ के दूध का उत्पादन सही तरीके से न हो तो ऐसे में आपका शिशु भूखा रहता है और उसको पोषण भी नहीं मिल पाता। इसलिए हम इस लेख में ब्रेस्ट मिल्क बढ़ाने के उपाय बता रहे हैं। माँ का दूध बढ़ाने के यह तरीके आप आसानी से घर पर रह कर ही अपना सकती हैं।

तो आइये आपको बताते हैं माँ के दूध को बढ़ाने के उपाय, लेकिन उससे पहले पहले बताते हैं माँ के दूध के कम होने के कारण -



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Saturday, July 21, 2018

फ्रैक्चर होने पर क्या करे, प्राथमिक उपचार

फ्रैक्चर या हड्डी टूटना एक आम समस्या है। हड्डी टूटना उसे कहते हैं जब आपकी हड्डी में दरार या क्रैक आ जाता है या वह कई हिस्सों में टूट जाती है। चोट लगने या एक्सीडेंट होने के कारण आपकी हड्डी टूट सकती है।

एक हड्डी लम्बाई या चौड़ाई में टूट सकती है। ज़्यादातर फ्रैक्चर तब होते हैं जब हड्डी पर ज़रूरत से ज्यादा दबाव बनता है।

हड्डी टूटने के मामले में सही प्राथमिक उपचार आवश्यक होता है क्योंकि इससे घायल व्यक्ति को दर्द भी कम होता है और हड्डी जल्दी जुड़ने की सम्भावना भी बढ़ जाती है।

इस लेख में हड्डी टूटने के संकेत और फर्स्ट ऐड के बारे में बताया गया है।

(और पढ़ें - चोट की सूजन कम करने के घरेलू उपाय)



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खून चढ़ाना क्या होता है, खून कैसे चढ़ाया जाता है, फायदे और नुकसान

ब्लड ट्रांसफ्यूजन को हिंदी में रक्ताधान कहा जाता है। आम बोलचाल की भाषा में इसे खून चढ़ाना कहा जाता है। रक्त दान से प्राप्त लाल रक्त कोशिकाओं, प्लेटलेट्स और प्लाज्मा को किसी व्यक्ति के शरीर में चढ़ाने की प्रक्रिया को ही ब्लड ट्रांसफ्यूजन या रक्ताधान कहा जाता है।

ट्रॉमा, खून बहने का विकार या ऑपरेशन के कारण खून अधिक बह जाना इत्यादि परेशानियों के लिए खून चढ़ाने की जरूरत पड़ती है। खून चढ़ाने की जरूरत तब भी पड़ती है जब शरीर खुद किसी कारण से आवश्यकता के अनुसार प्रयाप्त रक्त या रक्त के अन्य घटक बनाने में सक्षम नहीं होता है।

खून चढ़ाने के लिए आमतौर पर खून दान करने वाले स्वैच्छिक रक्तदाताओं से एकत्रित किया जाता है। दान किए गये खून की गहन जाँच होती है, ताकि किसी भी तरह के संक्रमण वाले खून को न चढ़ाया जा सके।

(और पढ़े - रक्तदान के फायदे)

इस लेख में विस्तार से बताया गया है कि खून चढ़ाना क्या होता है, रक्ताधान की प्रक्रिया क्या होती है और खून चढ़ाने के फायदे और नुकसान क्या हो सकते हैं। साथ ही यह भी बताया गया है कि खून चढ़ाने की जरूरत किसे होती है।



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जल जाने पर क्या करें, क्या लगाएं, प्राथमिक उपचार

जलना घर में लगने वाली आम चोटों में से एक है, खासकर बच्चों में। जलने का मतलब केवल जलने की सनसनी होना नहीं होता, इससे त्वचा को गंभीर नुकसान होता है जिससे त्वचा की कोशिकाएं नष्ट हो जाती हैं।

हीट या गर्मी के किसी स्त्रोत, जैसे गर्म धातु, करंट, गर्म पदार्थ या स्टीम के संपर्क में आने से त्वचा जल जाती है। अगर आपने प्रभावित क्षेत्र पर कपडा पहना हुआ है, तो वह गर्मी को बाहर निकलने नहीं देता जिससे और नुक्सान होता है। त्वचा के जैसे से त्वचा के ऊतकों को नुकसान होता है।

(और पढ़ें - जलने के कारण)

ज़्यादातर लोग जलने के बाद बिना किसी गंभीर नुकसान के ठीक हो जाते हैं, लेकिन यह जलने की वजह और गंभीरता पर निर्भर करता है। गंभीर जलने की स्थिति में तुरंत चिकित्सा की आवश्यकता होती है नहीं तो पीड़ित व्यक्ति को गंभीर नुक्सान हो सकता है और उसकी मौत भी हो सकती है।

इस लेख में जलने की वजह, प्रकार, गंभीरता और जलने पर क्या करना चाहिए के बारे में बताया गया है।



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नवजात शिशु को सर्दी जुकाम

बच्चे में जन्म से ही थोड़ी-बहुत प्रतिरक्षा प्रणाली होती है। लेकिन बच्चों की प्रतिरक्षा प्रणाली को मजबूत होने में थोड़ा समय लगता है। प्रतिरक्षा तंत्र जब तक मजबूत नहीं होता तब तक बच्चों में वायरल इन्फेक्शन का खतरा बना रहता है, जो नवजात शिशुओं में सर्दी जुकाम का कारण बनता है।

(और पढ़ें - बच्चों की इम्यूनिटी कैसे बढ़ाएं)

करीब 200 से अधिक प्रकार के वायरस नवजात शिशुओं में सर्दी जुकाम का कारण बन सकते हैं। अच्छी बात यह है कि सर्दी जुकाम होने से आपके शिशु की प्रतिरक्षा प्रणाली को मजबूत होने में मदद मिलती है (लेकिन हर प्रकार के वायरस से संक्रमित होने से ऐसा नहीं होता)।

शिशु को साल के किसी भी समय सर्दी जुकाम हो सकता है। एक साल का होने से पहले ही अधिकांश बच्चों को कम से कम सात बार सर्दी जुकाम हो जाता है। यदि आपकाे शिशु के पास अन्य बड़े बच्चे ज्यादा रहते हों, तो उसको सुर्दी जुकाम होने की संभावना बढ़ जाती है।

नवजात शिशुओं में सर्दी जुकाम होना कोई गंभीर समस्या नहीं होती है, लेकिन इससे उनको जल्द ही निमोनिया या क्रुप (croup: खांसी का प्रकार) जैसी गंभीर समस्याएं हो सकती हैं।

शिशुओं में होने वाले सर्दी जुकाम के बारे में आपको आगे विस्तार से बताया जा रहा है। साथ ही नवजात शिशुओं में सर्दी जुकाम के लक्षण व कारण बताये हैं। इसके आलावा आप यह भी जानेंगे कि नवजात शिशुओं में सर्दी जुकाम कितने दिनों तक रहता है, इसके इलाज व बचाव के उपाय क्या हैं, आदि।

(और पढ़ें - बच्चों की खांसी का इलाज)



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बेचैनी

बेचैनी क्या होती है?

बेचैनी स्थिर हो कर बैठने में असमर्थ होने की भावना, चिंतित महसूस करना, या ये महसूस करना कि कुछ होना या होने की आवश्यकता है। यह एक अंतर्निहित मनोवैज्ञानिक स्थिति का संकेत हो सकती है।

बेचैनी के प्रमुख कारणों में दवा का दुष्प्रभाव, सप्लीमेंट या कैफीन का उपयोग, मनोवैज्ञानिक विकार, तंत्रिका संबंधी स्थितियां, और अंतःस्रावी विकार (endocrine disorder) सम्मिलित हैं।

(और पढ़ें - कैफीन के नुक्सान)

बेचैनी किसी ऐसी चीज के प्रति शरीर की प्रतिक्रिया है, जो शारीरिक या मानसिक तनाव का कारण बन सकती है। जब आप बेचैन होते हैं, तो आपकी हृदय गति तेज हो जाती है, आपके सांस लेने में तेजी आती है और आप किसी भी चीज पर ध्यान केंद्रित नहीं कर पाते हैं।

(और पढ़ें - ध्यान करने का तरीका)

नौकरी के लिए इंटरव्यू या बड़े फैसले लेने से पहले बेचैनी सामान्य है लेकिन निरंतर बेचैनी सामान्य नहीं है। निरंतर बेचैनी आपके शरीर को सतत रूप से अशांत स्थिति में रखती है। ये बेचैनी रात में और बढ़ जाती है जो कि दिमाग और शरीर के लिए और हानिकारक होती है।

बेचैनी आपके जीवन की गुणवत्ता पर एक बड़ा प्रभाव डालती है, जिससे दिन में नींद आती है, चिड़चिड़ापन और ध्यान केंद्रित करने में मुश्किल होती है।



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Friday, July 20, 2018

नवजात शिशु को उल्टी

बच्चा जब बेहद छोटा होता है तो उसको कई तरह की परेशानियां हो जाती हैं। नवजात शिशुओं में उल्टी होना एक आम समस्या हैं। आमतौर पर शिशुओं को उल्टी होना किसी गंभीर समस्या की ओर इशारा नहीं करता है। अधिकतर नवजात शिशुओं में उल्टी होने की समस्यां समय के साथ अपने आप ठीक हो जाती है।

शिशु के बार-बार उल्टी करने से माता-पिता भी परेशान हो जाते हैं। नवजात शिशुओं में होने वाली उल्टी की समस्या को आगे विस्तार से बताया जा रहा है। साथ ही आपको नवजात शिशु में उल्टी के प्रकार, नवजात शिशु में उल्टी के कारण, नवजात शिशु में उल्टी को ठीक करने के उपाय, शिशु के उल्टी करने के बाद क्या करें और खिलाएं, नवजात शिशु को उल्टी होने से कैसे रोकें और शिशु की उल्टी रोकने की दवा आदि के बारे में बताया गया है।

(और पढ़ें - बच्चों का टीकाकरण चार्ट)



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बच्चे की मालिश का तेल

शिशु को मसाज करना उनके स्वास्थ्य के लिए बहुत अच्छा माना जाता है। मसाज करने से उनकी हड्डियां मजबूत होती हैं, स्वास्थ्य समस्याएं जैसे कब्ज, कोलिक (शिशु की आंतों में हवा के कारण पेट में दर्द) आदि की परेशानी कम होती है। इस लेख में हम आपको शिशु मसाज करने के प्राकृतिक और बाहर मिलने वाले आवश्यक तेल के बारें में बता रहे हैं। इन तेलों की मदद से आप अपने शिशु की मालिश रोजाना कर सकते हैं।

(और पढ़ें - नवजात शिशु की मालिश)

तो आइये आपको बताते हैं नवजात शिशु की मालिश के लिए तेल -

 



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Thursday, July 19, 2018

शरीर का तापमान कितना होता है

शरीर के सामान्य तापमान का अर्थ होता है मानव शरीर में आमतौर पर पाया जाने वाला तापमान। इसे चिकित्सीय भाषा में नॉरमोथेरमिया (Normothermia) कहा जाता है, यानी "सामान्य तापमान"। 

हर व्यक्ति के शरीर का तापमान उसकी उम्र, शारीरिक गतिविधि, संक्रमण, लिंग, दिन का समय, शरीर की तापमान लेने की जगह, चेतना और भावनात्मक स्थिति पर निर्भर करता है।

इस लेख में शरीर के तापमान का मतलब, सामान्य तापमान क्या होता है, तापमान बढ़ना और कम होना के बारे में बताया गया है।



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स्पीच थेरेपी क्या है, कैसे होती है, फायदे

स्पीच थेरेपी एक प्रकार की पुनर्वास प्रक्रिया है जो बच्चों या बड़ों में बोलने की या इससे संबंधित कोई परेशानी होने पर उसका इलाज करने के लिए की जाती है। इसकी मदद से शिशु जिनको खाना खाने में या निगलने में परेशानी है उसका भी उपचार हो सकता है।

इसके अलावा जिन बच्चों में सीखने में सामान्य परेशानी, शारीरिक विकलांगता, अटकना, कुछ उच्चारण करने में परेशानी, सुनने में परेशानी, क्लेफ्ट पेलेट (मुँह के ऊपरी होंठ या जीभ में एक जन्मजात विभाजन इसे भंग तालु या खंड तालु भी कहा जाता है), हकलाना, ऑटिस्टिक स्पेक्ट्रम डिसऑर्डर (आटिज्‍म), डिस्लेक्सिया, आवाज से सम्बंधित परेशानी, हलके गूंगेपन इत्यादि में भी मदद मिलती है।

व्यस्क लोगों में भी अगर इस तरह की परेशानियाँ पायी जाती है या किसी दुर्घटना की वजह से ये परेशानी पैदा हो जाती है तो उसमें भी स्पीच थेरेपी मदद कर सकती है।

इस लेख में विस्तार से बताया गया है कि स्पीच थेरेपी क्या है, कैसे की जाती है और स्पीच थेरेपी के क्या तरीके होते हैं इसके साथ ही यह भी बताया गया है कि स्पीच थेरेपी के क्या फायदे या लाभ है।

(और पढ़ें - बोलने में दिक्कत)



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खून की उल्टी

खून की उल्टी ऊपरी गैस्ट्रोइंटेस्टाइनल ट्रैक्ट में कहीं से रक्त का बाहर आना होता है जिसमें मुंह, फेरनिक्स, खाने की नली, पेट या छोटी आंत शामिल होती है। ये खांसी में खून आने से अलग होता है। खून की उल्टी आमतौर पर उल्टी में रक्त की ज़्यादा मात्रा को संदर्भित करता है। उल्टी में रक्त उजला लाल (ब्राइट रेड) हो सकता है या यह कॉफी बीन्स जैसे काले या भूरे रंग का हो सकता है।

खून की उल्टी नाक में से आये खून को निगलने या बहुत ज़ोर से खांसने से भी हो सकती है, लेकिन यह आमतौर पर किसी गंभीर समस्या के कारण होती है और इसपर तुरंत ध्यान दिया जाना चाहिए। यह एक गंभीर स्थिति है जो किसी व्यक्ति की आंतरिक मेडिकल स्थिति को इंगित करती है। अक्सर रक्तस्राव बहुत जल्दी बंद हो जाता है लेकिन कुछ मामलों में यह गंभीर और घातक हो सकती है।

इसके कई कारणों का इलाज किया जा सकता है लेकिन पहले सुनिश्चित करना महत्वपूर्ण होता है कि रक्तस्राव बंद हो जाए। उपचार में खून आने को रोकने और पेट के एसिड को कम करने के लिए दवा देना और नसों के माध्यम से तरल पदार्थ देना शामिल है।

(और पढ़ें - उल्टी को रोकने के उपाय)



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बच्चे को मिट्टी खाने की आदत

बच्चों में हर चीज को जानने की उत्सुकता होती है। अक्सर उनकी उत्सुकता किसी भी चीज को सीधे अपने मुंह में डाल लेने का रूप ले लेती है। आपने अक्सर देखा होगा कि कुछ बच्चों को मिट्टी खाने की आदत लग जाती है। मिट्टी खाने की आदत से बच्चों को कई तरह के शारीरिक और भावनात्मक गंभीर रोग हो सकते हैं। बच्चों में मिट्टी व अन्य न खाने वाली चीजों को खाने की आदत "पिका रोग" (Pica  Disorder) का एक रूप है।

मिट्टी खाने की अदात के कई कारण हो सकते हैं। बच्चों के सामाजिक स्तर, विटामिनमिनरल्स की कमी और अन्य मानसिक समस्याओं के बच्चों में मिट्टी खाने की आदत लग सकती है।

(और पढ़ें - विटामिन की कमी)

बच्चों में आमतौर पर देखी जाने वाली इस समस्या के बारे में आगे विस्तार से बताया जा रहा है। साथ ही आपको मिट्टी खाने के लक्षण, मिट्टी खाने के कारण, मिट्टी खाने से क्या नुकसान व रोग या बीमारी होते हैं और मिट्टी खाने का इलाज आदि के बारे में भी बताया गया है।

(और पढ़ें - शिशु टीकाकरण चार्ट)



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Wednesday, July 18, 2018

पल्स रेट (नब्ज) क्या है, देखने का तरीका, नॉर्मल रेंज

नब्ज देखना या चेक करना फर्स्ट ऐड का एक महत्वपूर्ण हिस्सा है जो सबको आना चाहिए। नब्ज से आप बीमारी और अन्य समस्याओं का पता लगा सकते हैं। नब्ज या पल्स देखने के कुछ अलग-अलग तरीके होते हैं।

नब्ज को अंग्रेजी में पल्स कहा जाता है और यह स्वास्थ का पता लगाने का एक बहुत ही महत्वपूर्ण निर्देशक है। पल्स रेट का मतलब है एक मिनट में कितनी बार आपका दिल धड़कता है या आपका ह्रदय दर क्या है। 

इस लेख में नब्ज यानि पल्स रेट क्या होता है, नब्ज कैसे देखते हैं और इसके कम या ज़्यादा होने पर किए जाने वाले उपचार के साथ-साथ नॉर्मल पल्स रेट के बारे में बताया गया है।



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बाल कमजोर क्यों होते हैं

कई लोग कमजोर बालों से परेशान रहते हैं। जब आप बालों को धोते हैं या काढ़ते हैं तो कमजोर बाल टूटने लगते हैं। किसी भी उपाय को आजमाने से पहले आपके लिए कमजोर बालों के कारण को जानना बेहद जरूरी है। इस लेख में हम आपको बालों के कमजोर होने के कारण बताने वाले हैं। इनसे आपको अपने बालों के प्रति सावधानियां बरतने में मदद मिलेगी।

(और पढ़ें - हेयर फॉल टिप्स और सलूशन)

तो आइये आपको बताते हैं बालों के कमजोर होने के कारण –



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कांटेक्ट लेंस क्या, प्रकार, तरीका, फायदे, नुकसान, कीमत

कांटेक्ट लेंस या आंखों का लेंस एक बहुत ही हल्का कॉस्मेटिक या उपचारक उपकरण है जो आमतौर पर आंखों के अंदर कॉर्निया पर पहना जाता है। आंखों के लेंस भी वही काम करते हैं जो चश्मे करते हैं जैसे कि दूर दृष्टि दोष या निकट दृष्टि दोष ठीक करना इत्यादि। लेंस पहनने के कई लाभ हैं, जैसे, अच्छा दिखना और चश्मे की तुलना में अधिक व्यावहारिक होना इत्यादि।

बहुत सारे लोग लेंस इसलिए भी पसंद करते हैं क्योंकि उन्हें कोई भी खेल खेलने में परेशानी नहीं होती है और दृष्टि का क्षेत्र भी अधिक विस्तृत होता है। आंखों के लेंस बनने वाले मटेरियल, पहने के तरीके, बदलने की समयावधि और बनावट के आधार पर अलग-अलग प्रकार के होते हैं।

आप इस लेख में विस्तार से बताया गया है कि कांटेक्ट लेंस क्या है, कांटेक्ट लेंस के प्रकार और इसे कैसे पहने, साथ ही यह भी बताया गया है कि आंखों के लेंस के लाभ या फायदे, नुकसान क्या हैं और कांटेक्ट लेंस की कीमत क्या है।

(और पढ़े - आंखों की रोशनी बढ़ाने के उपाय)



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नवजात शिशु को खांसी क्यों होती है और क्या करें

नवजात शिशु को वायरल इंफेक्शन के साथ ही सर्दी जुकाम और खांसी होने की संभावनाएं अधिक होती है। इस समय शिशुओं की रोग प्रतिरोधक क्षमता कमजोर होने के कारण उनको कई तरह के संक्रमण होने की संभावनाएं बनी रहती है। नवजात शिशुओं में खांसी के कारण गले में दर्द और कंपकंपी हो सकती है। अपने बच्चे को लंबे समय तक खांसी से परेशानी देखकर माता-पिता भी घबरा जाते हैं।

इस वजह से आगे आपको नवजात शिशुओं में खांसी के प्रकार, शिशुओं में खांसी होने के कारण, लक्षण और इलाज के बारे में पूरी जानकारी दी जा रही है। साथ ही आपको बच्चों की खांसी के उपाय और घरेलू नुस्खों के बारे में भी विस्तार से बताया गया है।

(और पढ़ें - शिशु टीकाकरण चार्ट)



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थर्मामीटर क्या है और उपयोग

थर्मामीटर प्राथमिक चिकित्सा या फर्स्ट ऐड में इस्तेमाल किए जाने वाले उपकरणों में से एक सबसे आम उपकरण है जिसका उपयोग हर घर में किया जाता है।

अगर आपको या आपके बच्चे को बुखार महसूस हो रहा है, तो आपको थर्मामीटर का उपयोग करके शरीर का तामपान देखने की आवश्यकता होगी। इसीलिए थर्मामीटर के बारे में जानकारी होना और थर्मामीटर ठीक से देखना आना आवश्यक है।

(और पढ़ें - बुखार कम करने के घरेलू उपाय)

शरीर के तापमान की सही जांच करने से इलाज भी सही तरीके से किया जा सकता है और समस्या को सही से समझा भी जा सकता है।

इस लेख में थर्मामीटर क्या है, थर्मामीटर का अविष्कार किसने किया, प्रकार और इस्तेमाल करने के तरीके के बारे में बताया गया है।

(और पढ़ें - फर्स्ट ऐड बॉक्स)



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अरोमाथेरपी करने का तरीका, फायदे, नुकसान

प्राचीन समय से शारीरिक स्वास्थ्य को ठीक रखने के लिए पेड़-पौधों से मिलने वाले तेल का प्रयोग किया जा रहा है इसे ही अरोमाथेरेपी कहा जाता है। पौधों की जड़ों, पत्तियों और फूलों से निकाले हुए तेलों का स्नान में, भाप लेने में, फेशियल, कैंडल्स और मसाज में उपयोग करके अरोमाथेरेपिस्ट आपके शारीरिक और मानसिक स्वास्थ्य को बढ़ाते हैं।

पूरी दुनिया की विभिन्न संस्कृतियों में लगभग 5,000 वर्षों से अरोमाथेरेपी का उपयोग एक विश्वशनीय इलाज के तौर पर किया जाता रहा है। एरोमेटिक एसेंशियल ऑयल (पेड़-पौधों से निकाले जाने वाले प्राकृतिक तेल) के एंटी बैक्टीरियल (जीवाणुरोधी), एंटी इंफ्लेमेटरी (इंफ्लमैशन को कम करने वाले गुण) और एनाल्जेसिक (दर्द दूर करने वाले) प्रभाव अरोमाथेरेपी में प्राकृतिक उपचार के रूप में काम करते हैं।

इस लेख में आप विस्तार से पढ़ेंगे की अरोमाथेरेपी क्या है, अरोमाथेरेपी किट क्या होती है और अरोमाथेरेपी कैसे की जाती है और इसके साथ ही आप यह भी पढ़ेंगे कि अरोमाथेरेपी के क्या फायदे या लाभ और नुकसान हो सकते हैं।



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नवजात शिशु को कफ

मौसम बदलने के साथ ही बच्चों को कई तरह की बीमारियां होने लगती हैं। बदलते मौसम में लोगों को सर्दी जुकाम होना बेहद ही आम बात है। इस तरह के मौसम में बच्चे जल्द ही संक्रमण का शिकार हो जाते हैं। साथ ही नवजात शिशुओं को कफ की समस्या भी हो जाती है।

आपके बच्चों को कफ की समस्या वायरल इंफेक्शन या बैक्टीरियल संक्रमण की वजह से हो सकती है। दरअसल बच्चों की रोग प्रतिरोधक क्षमता बेहद ही कमजोर होती है, ऐसे में हल्की सर्दी या गर्मी भी उनको होने वाले कफ या अन्य समस्याओं का आसान कारण बन जाती हैं।

नवजात शिशु कफ के दौरान बेहद असहज महसूस करते हैं। नवजात शिशुओं की इसी परेशानी को आगे विस्तार से बताया जा रहा है। साथ ही इस लेख में आपको नवजात शिशु को कफ के लक्षण, कारण और नवजात शिशु के कफ का इलाज कैसें करें आदि बातों को भी विस्तार से बताने का प्रयास किया गया है। साथ ही शिशु के कफ को निकालने के घरेलू उपाय भी बताये गए हैं।

(और पढ़ें - कफ निकालने के घरेलू नुस्खे)



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Tuesday, July 17, 2018

सीपीआर क्या है और कैसे देते हैं

मरीज या घायल व्यक्ति की जान बचाने के लिए सीपीआर एक बहुत महवपूर्ण तरीका है। सीपीआर की फुल फॉर्म "कार्डियो पल्मोनरी रिससिटैशन" (Cardiopulmonary resuscitation) है। इससे कार्डियक अरेस्ट और सांस न ले पाने जैसी आपातकालीन स्थिति में व्यक्ति की जान बचाई जा सकती है।

सीपीआर देने से पहले आपको इसकी ट्रेनिंग लेनी जरूरी है। हालांकि, सीपीआर सीखने के बाद भी इसके तरीके को याद रख पाना और सही से इस्तेमाल करना मुश्किल हो सकता है।

यह समस्या हल करने के लिए इस लेख में "कार्डियो पल्मोनरी रिससिटैशन" यानी सीपीआर का मतलब, सीपीआर कब देना चाहिए, सीपीआर देने से पहले की जांच और सीपीआर देने के तरीके के बारे में विस्तार से बताया गया है।



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Monday, July 16, 2018

लीवर बढ़ना

लीवर बढ़ना क्या है?

लीवर का सामान्य से ज़्यादा बड़ा आकार हो जाना लीवर बढ़ने की समस्या है। चिकित्सकीय भाषा में  इसे "हिपेटोमिगेली" (hepatomegaly) कहते हैं। 

लीवर बढ़ना कोई बीमारी नहीं है। परन्तु ये किसी होने वाली बीमारी का कारण हो सकता है जैसे, लीवर खराब होना, लिवर कैंसर या कंजेस्टिव हार्ट फेल होना (congestive heart failure​: हृदय का ढंग से शरीर में खून न भेज पाना जिससे सांस लेने में परेशानी, थकान, टांगों में दर्द आदि हो सकता है)। 



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नाक में फुंसी

नाक में फुंसी क्या होती है?

नाक के अंदर फुंसी होना थोड़ी परेशान करने वाली स्थिति या नाक के इन्फेक्शन का संकेत हो सकता है। फुंसी तब होती है जब त्वचा के छिद्रों में तेल या मृत त्वचा एकत्रित होने लगती है। हालांकि, फुंसी चेहरे पर अधिक होती है लेकिन यह नाक के अंदर भी हो सकती है।

कमजोर प्रतिरक्षा प्रणाली और शुगर से ग्रस्त लोगों को पिम्पल्स या फुंसी होने का जोखिम अधिक होता है। त्वचा के छिद्रों में अधिक मात्रा में तेल एकत्रित होता है। बैक्टीरिया भी रोम को प्रभावित कर सकता है, जिससे लाली, असहजता व सूजन होती है और फुंसी में दर्द होता है। ये बैक्टीरिया इन्फेक्शन कर सकते हैं।

(और पढ़ें - शुगर कम करने के घरेलू उपाय)

ये फुंसी काफी दर्दनाक हो सकती है क्योंकि यह नाक के अंदर की तरह होती है जहाँ छोटी-छोटी रक्त वाहिकाएं और तंत्रिकाएं होती हैं।

नाक में फुंसी होने से बचने के लिए अपनी साफ-सफाई का ध्यान रखें, पर्याप्त मात्रा में तरल पदार्थ पिएँ और कैफीन (चाय, कॉफी अदि) कम पिएँ।

इसके इलाज के लिए मेडिकल स्टोर पर मिलने वाली दर्दनिवारक दवाओं और "एंटीबायोटिक पेस्ट" (Antibiotic paste) का उपयोग किया जाता है।



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आँख लाल होना

आँख लाल होना क्या होता है?

आंख लाल होने की समस्या तब होती है जब आंख की सतह पर मौजूद रक्त वाहिकाएं फैलती हैं या चौड़ी होती हैं। ऐसा तब होता है जब आपकी आंख में कोई बाहरी वास्तु चली जाती है या कोई इन्फेक्शन होता है। आंख आमतौर पर कुछ समय के लिए लाल होती है और जल्द ठीक हो जाता है। यह एक या दोनों आंखों में हो सकता है और इसके साथ आंख में दर्द, आंखों में खुजली, रिसाव, आंखों की सूजन और धुंधला दिखना जैसी समस्याएं हो सकती हैं।

(और पढ़ें - आंख से कीचड़ आने के कारण)

आंख लाल होने में या तो आंखों का पूरा सफेद हिस्सा लाल दिखने लगता है या कुछ रक्त वाहिकाएं सूज कर लाल हो जाती हैं।

आराम पाने के लिए आप अपनी आंख ठन्डे पानी से धो सकते हैं और ठंडी सिकाई भी कर सकते हैं। अगर आपकी आंख ठीक नहीं होती और लाली बढ़ती है, तो अपने डॉक्टर के पास जाएं ताकि वह आपकी समस्या का सही परीक्षण और इलाज कर सकें।

(और पढ़ें - आँखों में दर्द का घरेलू इलाज)

आपके डॉक्टर आपकी आंख को एक उपकरण की मदद से देखेंगे और आपको आंख में डालने वाली ड्रॉप्स देंगे।



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जीभ के छाले

जीभ के छाले क्या होते हैं?

जीभ के छाले खुले हुए घाव होते हैं जो जीभ की सतह कट जाने पर होते हैं। हालांकि मुंह में कई जगहों पर इस प्रकार के घाव हो सकते हैं, जीभ के छाले आम तौर पर जीभ के नीचे या किनारों पर विकसित होते हैं। ये आमतौर पर 40 से कम उम्र के वयस्कों और किशोरों को होते हैं। अधिकांश छाले, नासूर होते हैं।

(और पढ़ें - मुंह के छालों का इलाज)

जीभ के ऊपर छाले, जहां स्वाद कलिका होती हैं, अक्सर चोट या किसी अंतर्निहित बीमारी के कारण होते हैं। जीभ के छाले आमतौर पर 10 से 14 दिनों के भीतर स्वयं को ठीक हो जाते हैं। ये पीड़ादायक होते हैं और इन्हें उत्तेजित करने से बचने के लिए देखभाल की जानी चाहिए।

(और पढ़ें - मुंह का कैंसर क्यों होता है)

अल्सर का दिखना आम तौर पर परीक्षण करने के लिए आपके डॉक्टर के लिए पर्याप्त होता है, हालांकि यदि अल्सर लंबे समय तक मौजूद रहता है तो ब्लड टेस्ट और बायोप्सी जैसे अतिरिक्त परीक्षणों की आवश्यकता हो सकती है। मुँह को स्वच्छ रखें, गर्म मसालेदार भोजन से बचें, और जीभ के छाले रोकने के लिए धूम्रपान और शराब से बचें।

(और पढ़ें - पर्सनल हाइजीन से संबंधित गलत आदतें)

दर्द निवारक दवाएं और घरेलू उपचार असुविधा को कम करने और जीभ के छालों के उपचार में उपयोगी हो सकते हैं। जीभ के छाले आमतौर पर हानिकारक नहीं होते और कुछ दिनों में अपने आप ठीक हो जाते हैं। हालांकि यदि आपको 2 सप्ताह से अधिक समय तक छाला होता है और आप तंबाकू और शराब का सेवन करते हैं, तो तुरंत डॉक्टर को दिखाएं। 

(और पढ़ें - धूम्रपान करने के नुक्सान)
 



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