Thursday, March 14, 2019

जानिए बॉडी बनाने वाले सप्लीमेंट कैसे बन जाते हैं किडनी के लिए जहर

क्या आपने कभी सोचा है कि किसी डॉक्टर या मेडिकल परामर्श के बिना बॉडी बनाने के लिए जो टॉनिक लेते हैं, वे आपको किस हद तक प्रभावित कर सकते हैं? रोहित नाम के एक युवा के साथ हुई यह घटना आपकी आंखे खोल देगी कि कैसे हम लोग अपनी बॉडी बनाने के मकसद से बिना किसी चिकित्स्कीय मार्गदर्शन के लंबे समय तक लगातार सप्लीमेंट लेने के कारण अपने स्वास्थ्य को नुकसान पहुंचा रहे हैं।

एक वयस्क व्यक्ति का सामान्य ब्लड प्रेशर 120/80 mm/hg और 140/90 mm/hg (mm Hg: मिलीमीटर ऑफ मर्क्युरी, ब्लड प्रेशर नापने की यूनिट है) के बीच माना जाता है। जब रोहित को अस्पताल ले जाया गया, तब उनका बीपी 220/140 mm/hg था। इसके अलावा परीक्षणों से पता चला कि उनका क्रिएटिनिन स्तर भी सामान्य से छह गुना अधिक था। डॉक्टर स्वयं एक स्वस्थ, युवा व्यक्ति की ऐसी स्थिति देख कर चकित रह गए। 

(और पढ़ें - क्रिएटिनिन स्तर का टेस्ट कैसा होता है)

पूछताछ पर, डॉक्टर को पता चला कि पश्चिमी दिल्ली के व्यवसायी, रोहित, बॉडी बनाने की चाहत रखते थे और अपने जिम ट्रेनर की सलाह पर चार साल से वर्कआउट से पहले लिए जाने वाले सप्लीमेंट ले रहे थे। इनमें मांसपेशियों की ताकत, ऊर्जा और क्षमता बढ़ाने के लिए कैफीन, एमीनो एसिड और क्रिएटिन जैसे तत्व शामिल थे।

(और पढ़ें - वर्कआउट से पहले क्या खाएं)

वे बताते हैं, "चार साल पहले, मेरे ट्रेनर ने सुझाव दिया कि मुझे अभ्यास से पहले प्री वर्कआउट फॉर्मूला अपनाना चाहिए। इसने मेरे ऊर्जा के स्तर में अचानक वृद्धि कर दी और मैं लंबे समय तक भारी वजन उठा सकता था।"

2003 से जिम जाने वाले 32 वर्षीय रोहित ने कहा कि जब तक किडनी प्रभावित नहीं हुई तब तक उन्होंने चार साल तक हर दिन सप्लीमेंट लिए। वे कहते हैं, "मुझे बाद में पता चला कि आम तौर पर इस तरह की खुराक कम अवधि के लिए या एक समय अंतराल पर ली जाती है।"

जिस हॉस्पिटल में रोहित को एडमिट किया गया वहां के सुपर स्पेशियलिटी अस्पताल में नेफ्रोलॉजी और रीनल ट्रांसप्लांट विभाग के निदेशक और प्रमुख के मुताबिक, अगर उनके बीपी को समय रहते दवाओं से कम नहीं किया गया तो रोहित की ब्रेन हैमरेज के कारण मौत हो सकती है। वे बताते हैं, "जब रोहित को अस्पताल में लाया गया तब उनका क्रिएटिनिन का स्तर 6.7 मिलीग्राम प्रति डेसीलीटर की सामान्य सीमा के मुकाबले 0.84-1.21mg था। वे किडनी फेल होने से केवल एक कदम दूर थे, अगर ऐसा हो जाता तो उनको जीवन भर डायलिसिस की आवश्यकता होती।" 

(और पढ़ें - बीपी कम करने के लिए योग)

सौभाग्य से, रोहित के मामले में, सप्लीमेंट का सेवन तत्काल बंद करने, बीपी को नियंत्रित करने के लिए दवा लेने और सही आहार लेने के चलते वे खतरे से बाहर निकल गए। लेकिन अब उन्हें इस बात पर प्रतिबंध के साथ रहना होगा कि वह क्या खा सकता है और कितना व्यायाम कर सकते हैं। डॉक्टर कहते हैं, "किडनी की कार्य क्षमता को पूरी तरह से बहाल नहीं किया जा सकता है। इसलिए, इसे अधिक खराब होने से रोकने के लिए, रोहित को स्ट्रीट फूड से बचने की सलाह दी गई है। उन्होंने कहा कि ज्यादा कठिन एक्सरसाइज भी नहीं करना चाहिए, केवल नियमित सैर करें।" 

(और पढ़ें - सुबह सैर करने के फायदे)

डॉक्टर ने कहा कि अस्पताल में सभी किडनी रोगियों में से 10% ऐसा युवा हैं जो सप्लीमेंट के अत्यधिक प्रयोग के शिकार हैं। वे बताते हैं, "हेल्थ सप्लीमेंट के लंबे समय तक उपयोग के कारण मेरे कम से कम तीन रोगियों की किडनी पूरी तरह खराब हो चुकी हैं और अब वे डायलिसिस पर हैं।"

दिल्ली के प्रसिद्ध लिवर एंड बायलरी साइंस इंस्टिट्यूट में नेफ्रोलॉजी के प्रमुख ने बिना चिकित्सकीय देखरेख के अक्सर सप्लीमेंट का उपयोग करने वाले युवाओं की संख्या में तेजी से हो रही वृद्धि के बारे में चिंता व्यक्त की। उन्होंने कहा, "कभी भी किसी डॉक्टर या योग्य पेशेवर की सलाह के बिना प्री-वर्कआउट सप्लीमेंट या प्रोटीन सप्लीमेंट नहीं लेना चाहिए। लेकिन जागरूकता की कमी के कारण, इस तरह की प्रथा चल रही है और जो आमतौर पर पूरी तरह स्वस्थ व्यक्तियों का भी स्वास्थ्य संकट में डाल रही है।"

एक बड़े फिटनेस सेंटर के प्रबंध निदेशक ने कहा, जिम जाने वाले लगभग 20% पुरुष ऐसे सप्लीमेंट लेते हैं। वे कहते हैं, "अधिक प्रोटीन वाली ड्रिंक्स लेना भी आम हैं। डॉक्टर की देखरेख में या चिकित्सा पेशेवर के मार्गदर्शन में इनका सेवन किया जाए तो अच्छा रहता है।" 

(और पढ़ें - प्रोटीन पाउडर कितनी मात्रा में लेना चाहिए)

नोट: यह लेख एक सच्ची घटना पर आधारित है, लेकिन रोगी की पहचान गुप्त रखने के उद्देश्य से उनका नाम और अन्य निजी जानकारियां बदली गयी है। यह लेख लिखने के पीछे हमारा मुख्य उदेश्य केवल हमारे पाठकों को जागरूक करना है। 



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Thursday, March 7, 2019

घुटने बदलने का ऑपरेशन या घुटना प्रत्यारोपण सर्जरी - Knee Replacement Surgery (Knee Arthroplasty) in Hindi

घुटने की समस्या और उससे होने वाले दर्द के उपचार के लिए की जाने वाली शल्यचिकित्सा (सर्जरी) को घुटनों की अर्त्रोप्लास्टी (Knee Arthroplasty) या घुटनों को बदलने की सर्जरी (Knee Replacement Surgery) कहा जाता है। अर्त्रोप्लास्टी का अर्थ है "जोड़ों की शल्यचिकित्सा" इसलिए, Knee Replacement Surgery है घुटने के जोड़ों की शल्यचिकित्सा। Knee Replacement Surgery में खराब जोड़ों (जिन जोड़ों में परेशानी है) को एक कृत्रिम धातु के जोड़ों (Artificial Metallic Joint) के साथ बदल दिया जाता है। 



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Homeopathic medicine, treatment and remedies for Shortness of Breath

Shortness of breath, also called dyspnea, refers to a feeling of suffocation or an inability or difficulty in breathing. Most commonly, breathing difficulties are reported at high altitudes, but depending on the physical and physiological condition of an individual, it may also occur while climbing stairs, walking, running and, in severe cases, standing for a long time. It can happen suddenly or develop gradually over weeks to months. Shortness of breath primarily occurs due to problems related to the heart or lungs. These organs are responsible for supplying the body with oxygen and removing carbon dioxide from tissues and blood. Any imbalance in the levels of oxygen, carbon dioxide and haemoglobin directly impact the normal functioning of body. Common conditions that cause shortness of breath are asthma, chronic obstructive pulmonary disease, allergic reactions, low blood pressure, anaemia, enlarged heart, coronary heart disease, and choking.

Homeopathic texts describe several remedies for treating conditions that lead to shortness of breath. Medicines such as blatta orientalis, ipecacuanha, lobelia inflata and antimonium tartaricum, are carefully matched with symptoms and personality of the individual and then prescribed to achieve an overall improvement in health. 



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Wednesday, March 6, 2019

ईएमजी टेस्ट - Electromyography (EMG) in Hindi

क्या आपके डॉक्टर ने आपको कभी EMG नामक कोई जांच करवाने का आदेश दिया है? यदि ऐसा हुआ है तो आप जरूर जानते होंगे कि इलेक्ट्रोमायोग्राफी (EMG) यानी ईएमजी मांसपेशियों के स्वास्थ्य की स्थिति और उन्हें नियंत्रित करने वाली तंत्रिका कोशिकाओं का मूल्यांकन करने की एक जांच ​​प्रक्रिया है। इन तंत्रिका कोशिकाओं को मोटर न्यूरॉन्स के रूप में जाना जाता है। ये तंत्रिका कोशिकाएं विद्युत संकेतों को संचारित करती हैं, जिनसे मांसपेशियों में संकुचन तथा सामान्य स्थिति बहाल होती है। ईएमजी टेस्ट इन संकेतों को ग्राफ या संख्याओं में बदलता है, जिससे डॉक्टरों को रोग का पता करने में मदद मिलती है।

(और पढ़ें - सीए 27.29 टेस्ट क्या है)

डॉक्टर आमतौर पर ईएमजी टेस्ट करवाने के लिए तब कहते हैं, जब किसी व्यक्ति में मांसपेशी या तंत्रिका विकार के लक्षण दिख रहे हो। मांसपेशी या तंत्रिका विकार के कारण अंगों में झुनझुनी, सुन्नता या कमजोरी जैसे लक्षण पैदा हो सकते हैं। ईएमजी टेस्ट के परिणाम डॉक्टर को मांसपेशियों के विकारों, तंत्रिका विकारों तथा नसों और मांसपेशियों के बीच संबंध को प्रभावित करने वाले विकारों का निदान करने में मदद कर सकते हैं। कुछ डॉक्टर इलेक्ट्रोमायोग्राफी को इलेक्ट्रोडायग्नॉस्टिक एग्जाम भी कहते हैं।

इस लेख में ईएमजी टेस्ट क्या है, कब किया जाता है, ईएमजी टेस्ट के पहले, दौरान और बाद में क्या होता है और ईएमजी टेस्ट के परिणामों को कैसे समझे इसके बारे में विस्तार से बताया गया है।

(और पढ़ें - नसों की कमजोरी का इलाज)



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सीए 27.29 टेस्ट - CA 27.29 Test in Hindi

परिचय

सीए 27.29 (कैंसर एंटीजन 27.2)  एक एंटीजन होता है। यह प्रोटीन का एक प्रकार है, जो कोशिकाओं की सतह पर मौजूद होता है। सीए 27.29 को एक जीन के द्वारा बनाया जाता है सीए 27.29 एक ग्लाइकोप्रोटीन (ग्लाइको का मतलब शुगर होता है) है, जो खासतौर पर एपिथेलियल सेल्स (Epithelial cells) के ऊपर स्थित होता है। ब्रेस्ट कैंसर की कोशिकाएं सीए 27.29 प्रोटीन में और खून में मिल जाती है।

(और पढ़ें - सीए 125 टेस्ट क्या है)



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सीए 19.9 टेस्ट - CA 19.9 Test (Pancreatic Cancer Marker, Serum) in Hindi

परिचय

एंटीजन एक ऐसा पदार्थ होता है जिसके कारण प्रतिरोधक क्षमता किसी रोग या संक्रमण के प्रति प्रतिक्रिया देती है। कार्बोहाइड्रेट एंटीजन सीए 19-9 एक प्रकार का एंटीजन होता है जो अग्नाशय की कैंसर कोशिकाओं द्वारा स्त्रावित किया जाता है। इसको ट्यूमर मार्कर भी कहा जाता है। ट्यूमर मार्कर वे पदार्थ होते हैं जो शरीर में कैंसर होने की प्रतिक्रिया के रूप में सामान्य कोशिकाओं या कैंसर कोशिकाओं द्वारा बनाए जाते हैं। यह एक प्रकार का प्रोटीन होता है, जो कुछ कैंसर कोशिकाओं की सतह पर पाए जाते हैं। जब यह कैंसर कोशिकाओं से स्त्रावित होता है, तो यह खून में भी पाया जाता है। 

जो लोग स्वस्थ होते हैं उनके खून में कम मात्रा में सीए 19-9 पाया जाता है। यदि किसी व्यक्ति में सीए 19-9 का स्तर अधिक हो तो यह अग्नाशय कैंसर का संकेत दे सकता है। लेकिन कभी-कभी सीए 19-9 का अधिक स्तर अन्य कैंसर या अन्य कई विकारों का संकेत भी दे सकता है जैसे सिरोसिस और पित्त में  पथरी आदि।

(और पढ़ें - पित्ताशय की सूजन का कारण)



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सीए 15.3 टेस्ट - CA 15.3 (Breast Cancer Marker, Serum)

परिचय

सीए 15-3 एक प्रकार का प्रोटीन होता है, जो स्तन के ऊतकों का सामान्य उत्पाद होता है। सीए 15-3 प्रोटीन स्तन कैंसर का कारण नहीं बनता है। लेकिन अगर स्तन में कैंसर युक्त ट्यूमर विकसित हो गया है, तो कोशिकाओं के साथ-साथ सीए 15-3 का स्तर भी बढ़ जाता है। सीए 15-3 एक प्रकार का एंटीजन या एक ऐसा पदार्थ होता है जो शरीर की प्रतिरक्षा प्रणाली को उत्तेजित करता है। कुछ प्रकार की कैंसर कोशिकाएं सीए 15-3 एंटीजन को खून में स्त्रावित कर देती हैं। 

सीए 15-3 का इस्तेमाल ट्यूमर मॉनिटर के रूप में किया जाता है। इसका उपयोग आमतौर पर ब्रेस्ट कैंसर के रोगी की प्रतिक्रिया और कैंसर फिर से होने आदि जैसी स्थितियों का पता लगाया जाता है।

सीए 15-3 का सामान्य स्तर क्या है?

सीए 15-3 की सामान्य सीमा 30 यू/एमएल से कम होती है। इसकी ऊपरी सीमा लेबोरेटरी और टेस्ट करने के लिए किस प्रकार की किट का इस्तेमाल किया जाता है इस पर निर्भर करती है। अलग-अलग किट, तरीकों व लेबोरेटरी से निकाले गए स्तर के मान को एक दूसरे की जगह पर इस्तेमाल नहीं किया जा सकता है।

(और पढ़ें - स्तन कैंसर की सर्जरी)



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सीए 125 टेस्ट - CA 125 Test in Hindi

सीए (CA) का मतलब कैंसर एंटीजन (Cancer antigen) होता है। सीए 125 खून में पाया जाने वाला एक प्रोटीन होता है। विशेष रूप से सीए 125 शरीर के अन्य हिस्सों के मुकाबले ओवेरियन (अंडाशय/डिम्बग्रंथि) कैंसर की कोशिकाओं में अधिक मात्रा में पाया जाता है। सीए 125 की पहचान 1980 के दशक की शुरुआत में की गई थी और शरीर में इसके महत्व व कार्यों के बारे में अब तक पता नहीं चल पाया है। सीए 125 के स्तर को मापने के लिए सीए 125 टेस्ट किया जाता है, जो एक सामान्य खून टेस्ट की तरह किया जाता है।

(और पढ़ें - सीआरपी ब्लड टेस्ट क्या है)



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एल्बुमिन टेस्ट - Albumin Test

परिचय:

प्रोटीन खून में पाया जाने वाला एक पदार्थ है, जो खून के माध्यम से ही आपके पूरे शरीर में सर्कुलेट होता हैं और शरीर में तरल का संतुलन बनाने में मदद करता हैं। यह खुद ही एक प्रकार का प्रोटीन होता है, जिसे लिवर द्वारा बनाया जाता है। गौरतलब है कि एल्बुमिन खून में सबसे अधिक मात्रा में पाया जाने वाला प्रोटीन होता है। 

एल्बुमिन भी शरीर में तरल पदार्थों का संतुलन बनाए रखने में मदद करता है। यह रक्त वाहिकाओं में अधिक रिसाव होने से रोकथाम करता है। इसके अलावा यह ऊतकों को स्वस्थ बनाने और महत्वपूर्ण हार्मोन व पोषक तत्वों को शरीर में पहुंचा कर शरीर के बढ़ने में भी महत्वपूर्ण भूमिका निभाता है । 

जब किसी समस्या के कारण लिवर की एल्बुमिन बनाने की क्षमता प्रभावित हो जाती है, तो एल्बुमिन का स्तर कम या बहुत अधिक कम हो जाता है। इसके अलावा प्रोटीन का अवशोषण बढ़ने, प्लाज्मा की मात्रा बढ़ने या किडनी संबंधी समस्याओं के कारण प्रोटीन कम होने लगना आदि जैसी समस्याओं के परिणामस्वरूप भी एल्बुमिन का स्तर कम होने लगता है।

(और पढ़ें - लिवर खराब होने के लक्षण)



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सीडी 4 टेस्ट - CD4 Test in Hindi

परिचय

खून में सीडी 4 टेस्ट एक ऐसा टेस्ट है, जो यह बताता है कि खून में कितनी मात्रा में सीडी 4 कोशिकाएं मौजूद हैं। सीडी 4 कोशिकाएं एक प्रकार की रक्त कोशिकाएं होती हैं। इन्हें टी कोशिकाएं (T cells)  भी कहा जाता है। ये कोशिकाएं खून के माध्यम से आपके पूरे शरीर में घूमती हैं और बैक्टीरिया, वायरस व अन्य रोगाणुओं को नष्ट करती हैं। 

ये कोशिकाएं रोगों से लड़ती हैं। लिम्फोसाइट एक प्रकार की सफेद रक्त कोशिका होती है, जिसकी दो श्रेणियां होती हैं टी कोशिका (T cells) और बी कोशिका (B cells)। टी कोशिकाएं वायरल इन्फेक्शन से लड़ती है और प्रतिरक्षा प्रणाली को बढ़ाती है, जबकि बी कोशिकाएं बैक्टीरियल इन्फेक्शन से लड़ती है। 

कभी-कभी शरीर में सीडी 4 कोशिकाओं की मात्रा बहुत ज्यादा या बहुत कम हो जाती है। इसका मतलब होता है कि आपकी प्रतिरक्षा प्रणाली ठीक से काम नहीं कर पा रही है। 

यदि आप एचआईवी से ग्रस्त हैं, तो असरदार एंटीवायरल ट्रीटमेंट लेकर आप अपना सीडी 4 कोशिकाओं की संख्या सामान्य रख सकते हैं और एचआईवी के लक्षणों व उससे होने वाली अन्य समस्याओं को कंट्रोल में रख सकते हैं साथ ही लंबे समय तक जीवन जी सकते हैं।

अध्ययन के द्वारा यह पता चला है कि एचआईवी से ग्रस्त जो व्यक्ति नियमित रूप से अपने उपचार करवाते हैं, वे एक स्वस्थ व्यक्ति (जो एचआईवी से ग्रस्त नहीं हैं) की तरह जीवन जी सकते हैं।

कुछ लोगों में सीडी 4 कोशिकाओं की संख्या बहुत कम होती है। ऐसे लोगों को एंटीवायरल दवाओं के साथ-साथ कुछ विशेष प्रकार की दवाएं लेने की आवश्यकता पड़ सकती है, जो कुछ विशेष प्रकार के संक्रमणों की रोकथाम करती हैं। जब एंटीवायरल दवाओं की मदद से सीडी 4 कोशिकाओं की संख्या बढ़ जाती है।

(और पढ़ें - लिम्फोमा के लक्षण)



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मनोवैज्ञानिक परीक्षण - Psychological Testing in Hindi

परिचय

“मनोवैज्ञानिक परीक्षण” (साइकोलॉजिकल टेस्टिंग) टेस्टों की एक ऐसी श्रंखला या सीरीज होती है जिसमें कई प्रकार के “मनोवैज्ञानिक टेस्ट” (साइकोलॉजिकल टेस्ट) किये जाते हैं। ये टेस्ट विशेष रूप से किसी व्यक्ति में उसके व्यवहार की जांच करते हैं, जिसे “सेंपल ऑफ बिहेवियर” कहा जाता है। जब किसी व्यक्ति को कोई काम दिया जाता है, तो उस काम पर व्यक्ति के प्रदर्शन को व्यवहार का सेंपल या उदाहरण कहा जाता है। व्यवहार के कुछ सेंपल ऐसे टेस्ट के द्वारा प्राप्त किये जाते हैं जिनमें मरीज को कुछ लखना-पढ़ना होता है। ये मनोवैज्ञानिक परीक्षण के सबसे आम टेस्टों में से हैं। टेस्टों में मरीज से पेंसिल और पेपर से काम करवाया जाता है, जिससे मनोवैज्ञानिक परीक्षण के परिणाम निकाले जाते हैं। 

(और पढ़ें - मनोचिकित्सा क्या है)

ऐसा माना जाता है कि अच्छी तरह से किया गया टेस्ट व्यक्ति की मनोवैज्ञानिक रचना को दर्शाता है, जैसे स्कूल के किसी विषय में प्रदर्शन, संज्ञानात्मक क्षमता, योग्यता, भावनात्मक और व्यक्तित्व स्थिति आदि। टेस्ट के रिजल्ट में किसी प्रकार का बदलाव, मरीज की मनोवैज्ञानिक रचना में बदलाव दर्शाता है। हालांकि जिस मनोवैज्ञानिक रचना का टेस्ट किया गया है उसी के बदलाव का पता लगाया जा सकता है। मनोवैज्ञानिक परीक्षण के पीछे के विज्ञान को “साइकोमेट्रिक्स” (Psychometrics) कहा जाता है।

(और पढ़ें - मानसिक रोग के लक्षण)



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एलिसा टेस्ट - ELISA Test in Hindi

एलिसा टेस्ट के द्वारा यह पता लगाया जाता है, कि शरीर की प्रतिरक्षा प्रणाली सूक्ष्म रोगाणुओं के प्रति क्या प्रतिक्रिया कर रही है। इस टेस्ट के द्वारा प्रतिरक्षा प्रणाली में उपस्थित केमिकल व अन्य तत्वों की जांच की जाती है। एलिसा टेस्ट में एक एंजाइम होता है (एक प्रोटीन जो बायोकेमिकल रिएक्शन को बढ़ाता है)।

एलिसा टेस्ट की मदद से शरीर में एंटीबॉडीज या एंटीजन की जांच की जाती है। एंटीबॉडीज शरीर की प्रतिरक्षा प्रणाली द्वारा किसी रोग या संक्रमण से लड़ने के लिए बनाए जाते हैं और एंटीजन एक बाहरी पदार्थ होता है तो प्रतिरक्षा प्रणाली को संक्रमण या रोगों के खिलाफ उत्तेजित (जैसे एंटीबॉडीज बनाने के लिए उत्तेजित करना) करता है।

(और पढ़ें - बैक्टीरियल संक्रमण के लक्षण)

आगे इस लेख में आपको एलिसा टेस्ट के बारे में बताया जा रहा है। आप जानेंगे कि एलिसा टेस्ट को कब, क्यों और कैसे किया जाता है, और साथ ही इसका खर्च कितना होता है। आप यह भी जानेंगे कि इस टेस्ट से पहले क्या तयारी करनी होती है और एलिसा टेस्ट के बाद सावधानियां क्या बरतनी होती है। 



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प्रोलैक्टिन परीक्षण - Prolactin Test in Hindi

प्रोलैक्टिन एक हार्मोन होता है जो मस्तिष्क में स्थित पिट्यूटरी ग्रंथि के द्वारा बनाया जाता है। जब कोई महिला गर्भवती होती है या जब शिशु को जन्म देती है, तो उनके प्रोलैक्टिन हार्मोन का स्तर बढ़ जाता है। प्रोलैक्टिन का स्तर बढ़ने से महिलाओं के स्तनों में दूध बनने लगता है। यदि आप गर्भवती नहीं हैं और यहां तक कि अगर आप पुरुष हैं, तो भी प्रोलैक्टिन का स्तर बढ़ जाना संभव होता है। 

(और पढ़ें - माँ का दूध बढ़ाने के तरीके)

यह हार्मोन पुरुषों व महिलाओं दोनों के प्रजनन स्वास्थ्य के लिए जरूरी होता है। किसी व्यक्ति के खून में प्रोलैक्टिन के स्तर की कम या ज्यादा मात्रा उसकी प्रजनन क्षमता को प्रभावित भी कर सकती है। इस बात की स्पष्ट जानकारी नहीं है कि पुरुषों में प्रोलैक्टिन के मुख्य काम क्या होते हैं। हालांकि प्रोलैक्टिन परीक्षण का उपयोग पुरुषों और महिलाओं दोनों में यौन संतुष्टि को मापने के लिए किया जाता है। हार्मोन के कारण होने वाली अन्य समस्याओं का पता लगाने के लिए भी प्रोलैक्टिन परीक्षण की मदद ली जा सकती है। 

खून के सेंपल में प्रोलैक्टिन के स्तर की जांच करने के बाद डॉक्टर समस्या के लिए संभव इलाज का सुझाव दे सकते हैं। 

(और पढ़ें - यौन शक्ति बढ़ाने के उपाय)



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बोन डेंसिटी टेस्ट (डेक्सा स्कैन) - Bone Density Test (Dexa Scan) in Hindi

बोन डेंसिटी टेस्ट को समझने के लिए सबसे पहले यह जानना जरूरी है कि ओस्टियोपोरोसिस (हड्डियों को कमजोर करने वाला रोग) कैसे होता है।

हड्डी जीवित ऊतकों से बनी होती है। इसमें पुराने ऊतक खत्म होते रहते हैं और उनकी जगह पर नए जमा होते रहते हैं। ज्यादातर हड्डियां वयस्कता के शुरुआत तक ही पूरी तरह विकसित हो जाती हैं। इसके बाद बोन डेंसिटी धीरे-धीरे कम होती रहती है। पुरुषों व महिलाओं दोनों में उम्र के साथ बोन डेंसिटी कम होने की एक सामान्य दर होती है। महिलाओं में उम्र बढ़ने के अलावा रजोनिवृत्ति भी बोन डेंसिटी को कम करने का कारण बन सकती है। रजोनिवृत्ति के बाद शुरुआती 3 से 6 सालों में हड्डियों में काफी नुकसान होता है।

(और पढ़ें - रजोनिवृत्ति के घरेलू उपाय)

इस टेस्ट में एक्स रे तकनीक का इस्तेमाल किया जाता है। यह एक सुरक्षित, दर्द रहित और जल्दी होने वाला टेस्ट होता है जो हड्डियों की मजबूती को मापता है। इसके अलावा बोन डेंसिटी टेस्ट, ओस्टियोपोरोसिस विकसित होने से पहले ही हड्डी में किसी प्रकार के फ्रैक्चर की संभावनाओं को बता देता है। 

(और पढ़ें - हड्डी फ्रैक्चर के लक्षण)

आगे इस लेख में आपको बोन डेंसिटी टेस्ट के बारे में बताया जा रहा है। आप जानेंगे कि बोन डेंसिटी टेस्ट को कब, क्यों और कैसे किया जाता है, और साथ ही इसका खर्च कितना होता है। आप यह भी जानेंगे कि बोन डेंसिटी टेस्ट से पहले क्या तयारी करनी होती है और इसके बाद क्या सावधानी बरतनी होती है। 



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हीमोग्लोबिन टेस्ट - Hemoglobin (Hb) Test in Hindi

हीमोग्लोबिन को कभी-कभी एचबी (Hb) भी कहा जाता है, यह एक "कॉम्प्लेक्स प्रोटीन" होता है। यह लाल रक्त कोशिकाओं में पाया जाता है और इसमें आयरन के अणु पाए जाते है। हीमोग्लोबिन का मुख्य कार्य ऑक्सीजन को फेफड़ों से शरीर के ऊतकों तक ले जाना होता है। कार्बन डाइऑक्साइड की जगह पर ऊतकों (टिशूस) तक ऑक्सीजन पहुंचाना और कार्बन डाइऑक्साइड को वापस फेफड़ों तक ले जाना भी हीमोग्लोबिन का ही काम होता है, जहां से कार्बन डाइऑक्साइड को वापस शरीर से बाहर निकाल दिया जाता है। हीमोग्लोबिन में उपस्थित आयरन, लाल रक्त कोशिकाओं की सामान्य आकृति बनाए रखने में मदद करते हैं।

(और पढ़ें - हीमोग्लोबिन की कमी)

आगे इस लेख में आपको हेलोग्लोबिन के टेस्ट के बारे में बताया जाएगा - इसको कब, क्यों और कैसे किया जाता है, और साथ ही इसका खर्च कितना होता है। आप यह भी जानेंगे कि इस टेस्ट से पहले क्या तयारी करनी होती है और हीमोग्लोबिन टेस्ट के बाद सावधानियां क्या बरतनी होती है। 



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ब्लड ग्रुप टेस्ट - Blood Group Test in Hindi

हर व्यक्ति के खून की बनावट एक ही होती है, लेकिन फिर भी खून के कई प्रकार होते हैं। खून अाठ अलग-अलग प्रकार का होता है जिन्हें ब्लड ग्रुप कहा जाता है। आपका ब्लड ग्रुप कौन सा होगा, यह आपके जीन पर निर्भर करता है, जो आपको माता-पिता से मिलते हैं।

खून का प्रकार इस पर निर्धारित करता है कि लाल रक्त कोशिकाओं में कुछ विशेष प्रकार के प्रोटीन हैं या नहीं। इन प्रोटीन को एंटीजन कहा जाता है।

ब्लड ग्रुप काफी मायने रखता है, क्योंकि खून के सभी प्रकार एक दूसरे के प्रति अनुकूल नहीं होते। यह कई मेडिकल परिस्थितियों में काफी महत्वपूर्ण होता है। उदाहरण के लिए यदि किसी व्यक्ति में खून चढ़ाने की आवश्यकता है तो उसे खून का ऐसा प्रकार चढ़ाया जाना चाहिए जो उसके लिए अनुकूल हो। ऐसा इसलिए है क्योंकि खून का गलत प्रकार चढ़ाने से मरीज का इम्यून सिस्टम कुछ ऐसे रिएक्शन कर सकता है जिनसे गंभीर स्वास्थ्य समस्याएं हो जाती हैं, यहाँ तक कि मौत भी हो सकती है। 

(और पढ़ें - खून की जांच)

इसलिए ब्लड ग्रुप पता करने के लिए ब्लड ग्रुप टेस्ट किया जाता है। आगे इस लेख में ब्लड ग्रुप टेस्ट के बारे में विस्तार से बताया गया है।



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ब्रोंकोस्कोपी - Bronchoscopy in Hindi

ब्रोंकोस्कोपी क्या होती है?

ब्रोंकोस्कोपी एक एसी प्रक्रिया होती है जिसकी मदद से डॉक्टर श्वसन मार्गों और फेफड़ों की जांच करते हैं। ब्रोंकोस्कोपी आमतौर उन डॉक्टरों के द्वारा की जाती है जो फेफड़ों से संबंधित समस्याओं के विशेषज्ञ (Pulmonologist) होते हैं। ब्रोंकोस्कोपी की प्रक्रिया के दौरान एक पतली ट्यूब जिसे ब्रोंकोस्कोप (Bronchoscope) कहा जाता है उसे नाक या मुंह के माध्यम से गले मे डाला जाता है। 

ब्रोंकोस्कोपी में आमतौर पर लचीले ब्रोंकोस्कोप का इस्तेमाल किया जाता है। हालांकि कुछ ऐसे मामले भी हैं जिनमें कठोर ब्रोंकोस्कोप का इस्तेमाल किया जाता है, जैसे कि फेफड़ों में अत्यधिक खून बहना या गले में कुछ फंस जाना।

यदि आपको लगातार संक्रमण या खांसी हो रही है या फिर एक्स रे के दौरान फेफड़ों में कुछ असाधारण दिखाई देता है तो डॉक्टर आमतौर पर ब्रोंकोस्कोपी करवाने का सुझाव देते हैं। 

इसके अलावा ब्रोंकोस्कोपी का इस्तेमाल कफ (बलगम) या गले व फेफड़ों से ऊतकों का सेंपल लेने के लिए किया जाता है। यदि आपके श्वसन मार्ग गले में कुछ फंस गया है तो उसको निकालने के लिए भी ब्रोंकोस्कोपी का इस्तेमाल किया जाता है।

(और पढ़ें - कफ निकालने के उपाय)



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कोलोनोस्कोपी - Colonoscopy in Hindi

कोलोनोस्कोपी एक ऐसा टेस्ट है जिसका इस्तेमाल बड़ी आंत या गुदा में किसी प्रकार की खराबी या अन्य असामान्यताओं का पता लगाने के लिए किया जाता है। 

कोलोनोस्कोपी के दौरान मरीज की बड़ी आंत में गुदा के माध्यम से एक लंबी और लचीली ट्यूब डाली जाती है इस ट्यूब को कोलोनोस्कोप (Colonoscope) कहा जाता है। इस ट्यूब के अगले सिरे पर एक छोटा सा कैमरा लगा होता है जिसकी मदद से डॉक्टर गुदा के अंदर देख पाते हैं। 

यदि कोलन (बड़ी आंत) या गुदा में कोई असाधारण ऊतक या मांस बढ़ा हुआ है तो कोलोनोस्कोप की मदद से उसको हटाया जा सकता है। इसके अलावा कोलोनोस्कोपी के दौरान ऊतकों के सेंपल भी लिये जा सकते हैं। इन सेंपल को लेबोरेटरी में टेस्टिंग के लिए भेजा जाता है।

(और पढ़ें - गुदा के कैंसर के कारण)



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वीर्य की जांच - Semen Analysis in Hindi

यदि आपको या आपके पार्टनर को गर्भधारण करने में दिक्कत हो रही है तो यह आपकी सिर्फ परेशान ही नहीं बल्कि गंभीर रूप से शोकग्रस्त कर देता है। इसमें कोई शक नहीं है कि आप गर्भधारण ना हो पाने के पीछे का कारण जानने की कोशिश करेंगे। 

(और पढ़ें - प्रेग्नेंट न हो पाने के कारण)

हालांकि गर्भधारण ना होने से जुड़ी समस्याएं सिर्फ महिलाओं में ही नहीं पुरुषों में भी मिल सकती है। बांझपन के आधे मामलों में बांझपन की समस्या पुरुषों में पाई जाती है। और क्योंकि पुरुषों में बांझपन अक्सर शुक्राणुओं की कमी के कारण होता है इसलिए डॉक्टर ऐसी स्थिति में अक्सर वीर्य की जांच करवाने का आदेश देते हैं।

(और पढ़ें - बांझपन के घरेलू उपाय)



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एचएसजी - HSG (Hysterosalpingography) Test in Hindi

यदि आप एक महिला हैं और बच्चा पैदा करने की कोशिश कर रही हैं, तो शायद आपको पता होगा कि बच्चा पैदा करने के लिए शरीर के कई सारे अंदरुनी अंगों को सही तरीके से काम करना पड़ता है। आपके अंडाशय को हर महीने अंडा बनाना पड़ता है जिस प्रक्रिया को डिंबोत्सर्जन या ओवुलेशन (Ovulation) कहा जाता है। आपका गर्भाशय अच्छे आकार में होना जरूरी होता है और आपकी फैलोपियन ट्यूब (अंडे को अंडाशय से गर्भाशय तक पहुंचाने वाली एक ट्यूब) का खुला होना जरूरी होता है। 

यदि इनमें से कोई भी अंग ठीक से काम नहीं कर रहा तो आपको गर्भधारण करने में मुश्किल आ सकती है।

यदि आपकी फैलोपियन ट्यूब में रुकावट हो गई है तो वीर्य, अंडे तक नहीं पहुंच पाता या फिर निषेचित अंडा गर्भाशय तक नहीं पहुंच पाता। फैलोपियन ट्यूब रुकने के कई कारण हो सकते हैं, लेकिन कारण चाहे जो भी हो, डॉक्टर इसका परीक्षण हिस्टेरोसलपिंगोग्राफी (Hysterosalpingography) नामक टेस्ट से करते हैं। इसे एचएसजी टेस्ट भी कहा जाता है।

(और पढ़ें - प्रेगनेंसी में होने वाली समस्याएं)



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हेपेटाइटिस सी टेस्ट - Hepatitis C Test in Hindi

हेपेटाइटिस सी एक प्रकार का वायरस होता है, जो लिवर को संक्रमित करता है। हेपेटाइटिस सी को साइलेंट रोग (Silent disease) के नाम से भी जाना जाता है, क्योंकि लोग हेपेटाइटिस सी से संक्रमित हो जाते हैं और उनको पता भी नहीं चलता। हेपेटाइटिस सी से संक्रमित होने वाले लोगों में से कुछ ही लोग वायरस से जल्दी ही छुटकारा पाने में सक्षम हो पाते हैं, लेकिन ज्यादातर लोगों में यह एक दीर्घकालिक या आजीवन संक्रमण समस्या के रूप में विकसित हो जाती है। समय के साथ-साथ हेपेटाइटिस सी कुछ चिंताजनक समस्याएं पैदा कर देता है, जैसे लिवर क्षतिग्रस्त होना, लिवर खराब होना, यहां तक की लिवर कैंसर की समस्या भी उत्पन्न हो सकती है। अगर हेपेटाइटिस सी का इलाज ना किया जाए तो यह कुछ सालों में लिवर को बुरी तरह से क्षतिग्रस्त कर सकता है, जो काफी गंभीर और जीवन के लिए हानिकारक स्थिति होती है। अगर आप किसी संक्रमित व्यक्ति या खून के संपर्क में आते हैं, तो आप हेपेटाइटिस सी से संक्रमित हो सकते हैं।

(और पढें - लिवर को साफ रखने के लिए आहार)



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डेंगू टेस्ट - Dengue Test in Hindi

डेंगू मच्छरों द्वारा फैलाया जाने वाला एक वायरल संक्रमण होता है। डेंगू बुखार के लक्षणों में, गंभीर जोड़ों में दर्दमांसपेशियों में दर्द, लिम्फ नोड्स में सूजन, सिर दर्दबुखारथकान और लाल चकत्ते आदि शामिल हैं। बुखार के दौरान चकत्ते और सिर दर्द होने की स्थिति को डेंगू बुखार का संकेत माना जाता है। इस संक्रमण के कारण फ्लू जैसी बीमारी हो जाती है और कभी-कभी यह संभावित रूप से एक घातक जटिलता के रूप में भी उभर जाती है, जिसे गंभीर डेंगू कहा जाता है।

(और पढ़ें - जोड़ों में दर्द के घरेलू उपाय और सिर दर्द से छुटकारा पाने के नुस्खे)



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चिकनगुनिया की जांच - Chikungunya Test in Hindi

लोग मच्छरों के काटने के द्वारा चिकनगुनिया वायरस से संक्रमित होते हैं। इसके कारण से जोड़ों में दर्द और बुखार जैसी समस्याएं होने लगती हैं। कुछ दुर्लभ मामलों में ही यह घातक हो पाता है, लेकिन इसके लक्षण गंभीर, दीर्घकालिक और कमजोर कर देने वाले होते हैं। चिकनगुनिया के कुछ क्लिनिकल संकेत जिका (Zika) रोग तथा डेंगू से मिलते हैं। चिकनगुनिया का इलाज नहीं है, इसके उपचार का मुख्य लक्ष्य रोग के लक्षणों को ठीक करना होता है।

(और पढ़ें - चिकनगुनिया के घरेलू उपाय)



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यूरिक एसिड टेस्ट - Uric Acid Blood Test in Hindi

यूरिक एसिड एक केमिकल उत्पादित पदार्थ होता है, जो शरीर द्वारा जैविक यौगिकों वाले खाद्य पदार्थों को तोड़ने पर बनता है। यूरिक एसिड की ज्यादातर मात्रा खून में घुल जाती है, जिसको गुर्दों द्वारा फिल्टर किया जाता है और मूत्र के द्वारा शरीर से बाहर निकाल दिया जाता है। कई बार शरीर अत्याधिक मात्रा में यूरिक एसिड का उत्पादन करने लगता है, जिसको गुर्दे फिल्टर नहीं कर पाते। यूरिक एसिड की अधिक मात्रा शरीर में गाउट (Gout) जैसी समस्या से जुड़ी होती है। गाउट, गठिया का एक रूप होता है, जो जोड़ों में दर्द व सूजन पैदा करता है, खासकर यह पैरों और पैरों की बड़ी उंगलियों में सूजन पैदा करता है।

(और पढ़ें - यूरिक एसिड बढ़ने के लक्षण)



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ईईजी टेस्ट - EEG Test in Hindi

मस्तिष्क की कोशिकाएं विद्युत आवेगों (Electrical impulses) के माध्यम से एक दूसरे के साथ संपर्क करती हैं। ईईजी प्रक्रिया का इस्तेमाल इन गतिविधियों से जुड़ी समस्याओं का पता लगाने के लिए किया जाता है। मस्तिष्क कोशिकाओं के ये सिग्नल मशीन द्वारा रिकॉर्ड किए जाते हैं और बाद में डॉक्टर इनको देखते हैं कि कहीं ये असाधारण तो नहीं।

(और पढ़ें - लैब टेस्ट लिस्ट)

ईईजी द्वारा मस्तिष्क की तरंगों के पैटर्न पर नजर रखी जाती है और उनको रिकॉर्ड किया जाता है। धातु से बनी कुछ छोटी सपाट डिस्क (Disc) होती हैं जो एक तार से जुड़ी होती हैं, इन्हें इलेक्ट्रोड्स (Electrodes) कहा जाता है, जिसे खोपड़ी पर चिपकाया जाता है। इलेक्ट्रोड्स मस्तिष्क में विद्युत आवेगों का विश्लेषण करता है और उनको सिग्नल के रूप में कंप्यूटर तक भेजता, कंप्यूटर द्वारा इन सिग्नल्स को रिकॉर्ड किया जाता है।

(और पढ़ें - सीटी स्कैन क्या होता है)



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प्लेटलेट्स गिनती - Platelet Count in Hindi

प्लेटलेट्स गिनती या प्लेटलेट काउंट (Platelet count) एक प्रकार का लैब टेस्ट होता है, जिसकी मदद से आपके खून में प्लेटलेट्स की मात्रा को मापा जाता है। प्लेटलेट्स खून का ही हिस्सा होती है, जो खून के थक्के बनने में मदद करती है। प्लेटलेट्स आकार में लाल व सफेद रक्त कोशिकाओं से छोटी और आकृति में प्लेट जैसी होती हैं, जो खून में प्रवाहित होती रहती (Circulating) हैं। प्लेटलेट्स वे कोशिकाएं होती हैं, जो खून का थक्का बनाने की जिम्मेदार होती हैं। किसी भी वाहिका के टूटने का सबसे पहला जिम्मेदार इन्हीं को माना जाता है। प्लेटलेट्स की गिनती की मदद से कई ऐसी स्थितियों को बारीकी से देखा जाता है, जो खून के प्रभावी थक्के (Efficient clotting) बनाने की क्रिया को प्रभावित कर सकती हैं, जैसे खून बहने से संबधित विकार, संक्रमण, रक्त कैंसर आदि। 

(और पढ़ें - एचपीवी संक्रमण क्या है)



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सीआरपी ब्लड टेस्ट - CRP Blood Test in Hindi

सीआरपी यानी सी रिएक्टिव प्रोटीन (C-reactive protein) शरीर में सूजन व जलन को अंकित करता (दर्शाता) है। अगर शरीर में किसी प्रकार की सूजन, जलन आदि हो गई है, तो खून में सीआरपी का स्तर बढ़ जाता है। सी रिएक्टिव प्रोटीन का निर्माण लिवर की कोशिकाओं द्वारा किया जाता है।

(और पढ़ें - सूजन कम करने के घरेलू उपाय)

संक्रमण या अन्य मेडिकल स्थितियों की जांच करने के लिए डॉक्टर आपके सी रिएक्टिव प्रोटीन के स्तर की जांच कर सकते हैं। सीआरपी टेस्ट नैदानिक टेस्ट तो नहीं होता, लेकिन यह जांचकर्ताओं को ये जानकारी दे देता है कि मरीज के शरीर में सूजन/जलन है या नहीं। इस टेस्ट से मिली जानकारी का उपयोग अन्य कारकों के साथ संयोजन करके किया जाता है। जैसे लक्षण व संकेत, शारीरिक परीक्षण व अन्य टेस्ट के रिजल्ट के साथ जो सूजन व जलन संबंधी गंभीर स्थितियों को निर्धारित करते हैं। इसके बाद डॉक्टर आगे के अन्य टेस्ट कर सकते हैं।

(और पढ़ें - पैरों में सूजन के घरेलू उपाय)



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इको टेस्ट (इकोकार्डियोग्राफी) - Echocardiogram in Hindi

इको टेस्ट को इकोकार्डियोग्राफी या इकोकार्डियोग्राम (Echocardiogram) आदि नामों से भी जाना जाता है, इस टेस्ट में ध्वनि तरंगों (अल्ट्रासाउंड) का इस्तेमाल किया जाता है, जिसमें दिल की अंदरूनी तस्वीरें बनाई जाती हैं। इकोकार्डियोग्राफी दिल की गतिचाल (Movement) की एक चित्रात्मक रूपरेखा (Graphic outline) होती है। इको टेस्ट के दौरान, हाथ में पकड़ी एक छड़ी को आपकी छाती के ऊपर रखा जाता है, जो हार्ट वाल्व व चैम्बर आदि की तस्वीरें प्रदान करती है और जांचकर्ताओं को दिल के पंपिंग कार्यों की जांच करने में मदद करती है।

(और पढ़ें - हार्ट वाल्व ट्रीटमेंट)



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टीबी टेस्ट - TB Test in Hindi

टीबी या क्षय रोग (Tuberculosis) एक संक्रामक रोग होता है। यह रोग माइकोबैक्टीरियम ट्यूबरक्लोसिस (Mycobacterium tuberculosis) नाम के एक बैक्टीरिया से फैलता है। इस बैक्टीरिया के संपर्क में आने से गुप्त टीबी (Latent TB) हो जाता है, जिसका मतलब आप बैक्टीरिया से संक्रमित तो हो जाते हैं, मगर कोई लक्षण महसूस नहीं होता। गुप्त टीबी बाद में एक सक्रिय टीबी बन सकता है, जिसका डॉक्टर की मदद से इलाज करवाना बहुत जरूरी होता है।

(और पढ़ें - संक्रमण का इलाज)

टीबी का प्रभाव आमतौर पर फेफड़ों पर ही होता है, पर यह शरीर के अन्य हिस्सों को भी प्रभावित कर सकता है, जैसे मस्तिष्क, गुर्दे या रीढ़ की हड्डी आदि। अगर समय पर टीबी का इलाज ना किया जाए तो मरीज की मौत भी हो सकती है।

(और पढ़ें - टीबी के घरेलू उपाय)



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टेस्टोस्टेरोन टेस्ट - Testosterone Test in Hindi

टेस्टोस्टेरोन टेस्ट की मदद से पुरूष के हार्मोन के स्तर की जांच की जाती है। इस हार्मोन को एंड्रोजन (Androgen) कहा जाता है, जो खून में पाया जाता है। टेस्टोस्टेरोन सेक्शुअल विशेषताओं और उसके विकास को प्रभावित करता है। पुरुषों में यह वृषणों द्वारा बड़ी मात्रा में बनाया जाता है और महिलाओं में यह अंडाशय द्वारा बनाया जाता है। महिला तथा पुरुष दोनों में यह एड्रिनल ग्रंथि द्वारा भी कम मात्रा में बनाया जाता है।

(और पढ़ें - टेस्टोस्टेरोन बढ़ाने के उपाय)



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शुक्राणु की जांच (स्पर्म टेस्ट) - Sperm Test in Test

पुरुष बांझपन (Male infertility) अक्सर शुक्राणु कम बनने के कारण होता है। इसकी जांच करने के लिए सबसे पहला टेस्ट जो डॉक्टर द्वारा किया जाता है वह शुक्राणु की जांच होती है। क्योंकि जो जोड़े गर्भ धारण करने की कोशिश कर रहे होते हैं, वे अक्सर गंभीर तनाव और अनिश्चितता से पीड़ित होते हैं। शुक्राणु की जांच से उन परेशानी व बाधाओं का पता लगाने में काफी मदद मिलती है, जो गर्भधारण करने के दौरान हो सकती हैं। जो गर्भधारण में कठिनाई महसूस करते हैं, उन लोगों के लिए शुक्राणु की मात्रा में कमी, प्रजनन से जुड़ी समस्याओं का मुख्य कारण हो सकता है। अन्य शब्दों में, जो पुरूष बहुत ही कम मात्रा में शुक्राणु उत्पादन करता है, तो उस स्थिति में यह संभावना बहुत कम होती है कि उनमें से कोई एक शुक्राणु अंडे को सफलतापूर्वक निषेचित करने में सक्षम हो पाए।

(और पढें - जल्दी प्रेग्नेंट होने के टिप्स)



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स्टूल टेस्ट - Stool Test in Hindi

स्टूल कल्चर टेस्ट (Stool culture) या स्टूल टेस्ट की मदद से उन बैक्टीरिया का पता लगाया जाता है, जो पाचन तंत्र के निचले हिस्से में संक्रमण पैदा करते हैं। इस टेस्ट की मदद से बैक्टीरिया के उन प्रकारों में अंतर का पता लगाया जाता है, जो रोग का कारण बनते हैं (Pathogenic) और जो सामान्य रूप से पाचन तंत्र प्रणाली में पाए जाते हैं (Normal flora)। अगर जठरांत्र संबंधी लक्षणों (Gastroenteritis) का कारण पैथोजेनिक बैक्टीरिया ही हैं, तो स्टूल टेस्ट की मदद से इसको निर्धारित किया जाता है।

(और पढ़ें - पाचन शक्ति कैसे बढ़ाये)



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Ayurvedic medicine, treatment and remedies for Thyroid

Thyroid gland is an endocrine gland located below Adam’s apple in the neck. It produces a number of hormones including, T3 (triiodothyronine) and T4 (thyroxine) hormones. These hormones play a vital role in regulating pulse rate, body temperature, digestion and mood. An overactive or underactive thyroid gland can lead to thyroid conditions such as hypothyroidism and hyperthyroidism, both presenting with their own characteristic symptoms. In Ayurveda, the thyroid gland is not well studied and the most common thyroid conditions are classified under the term galaganda in Ayurveda.

Galaganda is characterised by an enlargement or swelling of the thyroid gland, which could be due to hyperthyroidism (overactive thyroid) or hypothyroidism (underactive thyroid).

People with galaganda may experience hyperthyroidism-related symptoms like shaking, agitation, diarrhoea and rapid heartbeats or may experience hypothyroidism-related symptoms like dry skin, weight gain and constipation. Sometimes galaganda may be asymptomatic. Thyroid cancer, Graves’ disease, being exposed to radiation or thyroiditis are some other causes of galaganda.

Panchakarma (five therapies) therapies including vamana (medical emesis) and virechana (purgation) along with rasayana chikitsa (rejuvenation therapy) help reduce swelling and treat galaganda. External applications like a lepa (coating the affected body part with medications) are also helpful in the treatment of galaganda. Herbs such as nirgundi (five-leaved chaste tree) and ashwagandha (Indian ginseng) and herbal formulations including kanchanar guggulu vati and chitrakadi vati are effective in treating galaganda.



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Tuesday, March 5, 2019

एलर्जी टेस्ट - Allergy Test in Hindi

एलर्जी एक बहुत ही संवेदनशील प्रतिक्रिया होती है, यह प्रतिक्रिया प्रतिरक्षा प्रणाली द्वारा उन पदार्थों के खिलाफ की जाती है, जो शरीर के संपर्क में आते हैं या शरीर के अंदर घुस जाते हैं। एलर्जी टेस्टिंग में त्वचा की जांच व खून टेस्ट आदि शामिल होते हैं। जिनकी मदद से यह पता लगाने की कोशिश की जाती है कि किस पदार्थ या एलर्जन तत्व के कारण एलर्जिक प्रतिक्रिया शुरू हुई है। आमतौर पर पहले स्किन टेस्ट किया जाता है, क्योंकि यह तीव्र और भरोसेमंद होता है और खून टेस्ट की तुलना में कम खर्चे में हो जाता है। लेकिन इन दोनों परीक्षणों में से किसी एक या दोनों को भी चुना जा सकता है।

(और पढ़ें - एलर्जी के घरेलू उपाय)



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बलगम की जांच - Sputum Test in Hindi

जब आपके श्वसन तंत्र में संक्रमण या फेफड़ा संबंधी कोई विकार होता है, तो फेफड़े एक गाढ़ा द्रव बनाते हैं, जिसे बलगम या स्प्यूटम (Sputum) के नाम से जाना जाता है। बलगम सांस लेने में कठिनाई और खांसी पैदा करता है तथा जीवाणुओं को संरक्षण देता है। अगर आपमें ऐसे किसी प्रकार के लक्षण महसूस हो रहे हैं, तो आपको डॉक्टर बलगम की जांच करवाने का सुझाव दे सकते हैं।

(और पढ़ें - फेफड़ों को स्वस्थ रखने के लिए आहार)



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Ayurvedic medicine, treatment and remedies for Herpes

Herpes, also called visarpa or parisarpa in Ayurveda, is a condition caused by the nita group of viruses, which includes herpes zoster virus, herpes simplex virus-1 and herpes simplex virus-2. Herpes zoster virus causes shingles, which is characterised by rapidly spreading inflammation, pricking pain, deep pink-coloured patches with itching, waxiness of the skin, erection of hair on the skin, lack of energy and weakness. Although herpes lesions appear to be simple, the pain and burning sensation are agonising. It is an acute condition which needs immediate treatment.

Herpes simplex is another type of herpes infection. It is caused due to herpes simplex virus (HSV). HSV-1 mainly affects the oral cavity but it may also cause genital infections. Oral herpes spreads through direct contact with infected secretions such as by sharing toothbrush and kissing. HSV-2 is the causative organism for genital herpes, a sexually transmitted disease. 

Ayurvedic texts mention various treatments, herbs and medicines for the management of visarpa based on the predominance of the vitiated doshas. After a detailed observation of the clinical condition, an Ayurvedic physician may prescribe treatment procedures like langhana (fasting), virechana (purgation), raktamokshana (bloodletting) and lepa (coating the affected body part with medications) to treat visarpa.

Herbs and medicines used for the treatment of visarpa are yashtimadhu (mulethi), arjuna, ghrita (clarified butter), haritaki (chebulic myrobalan), amrutadi kwatha and panchatikta ghrita guggulu.



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किडनी फंक्शन टेस्ट - Kidney Function Test in Hindi

गुर्दे (किडनी) मानव शरीर के स्वास्थ्य को बनाए रखनें में कई महत्वपूर्ण भूमिका निभाते हैं। किडनी का सबसे महत्वपूर्ण काम खून से अपशिष्ट पदार्थों को फिल्टर करके उन्हें पेशाब के साथ बाहर निकालना होता है। गुर्दे शरीर में पानी और कई आवश्यक खनिजों के स्तर को बनाए रखने में भी मदद करता है। इसके अलावा गुर्दे शरीर में निम्नलिखित का उत्पादन करने के लिए भी काफी महत्वपूर्ण माने जाते हैं:

  • विटामिन डी
  • लाल रक्त कोशिकाएं
  • हार्मोन जो ब्लड प्रेशर को नियमित रखते हैं।

गुर्दों के प्रभावी रूप से काम ना कर पाने की कई वजह हो सकती हैं। किडनी फंक्शन टेस्ट गुर्दें के कार्यों की जांच करने और समय के साथ-साथ उन पर नजर रखने में डॉक्टर की मदद करता है। कई प्रकार के खून व यूरिन टेस्ट किडनी के फंक्शन के बारे में डॉक्टर को जानकारी प्रदान कर सकते हैं। किडनी फंक्शन टेस्ट को रिनल फंक्शन टेस्ट (Renal function) और यूरिया एंड इलेक्ट्रोलाइट टेस्ट (Urea and electrolytes test) के नाम से भी जाना जाता है।



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लेप्रोस्कोपी - Laparoscopy in Hindi

लेप्रोस्कोपी, सर्जरी का एक प्रकार होता है। इसकी मदद से डॉक्टर मरीज के शरीर में बिना कोई बड़ा चीरा दिए अंदरूनी पेट या पेल्विस के अंदर तक सर्जरी करने में सझम हो पाते हैं। लेप्रोस्कोपी सर्जरी को 'कीहोल' सर्जरी (Keyhole) और न्यूनतम चीरा सर्जरी (Minimally invasive surgery) के नाम से भी जाना जाता है। इस सर्जरी के दौरान किसी बड़े आकार का चीरा लगाने से बचा जा सकता है, क्योंकि इसमें सर्जरी करने वाले डॉक्टर (सर्जन) लेप्रोस्कोप (Laparoscope) नाम के उपकरण का इस्तेमाल करते हैं।

(और पढ़ें - सर्जरी से पहले की तैयारी)



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अल्ट्रासाउंड - Ultrasound in Hindi

अल्ट्रासाउंड में उच्च आवृत्ति की ध्वनि तरंगों (High-frequency sound waves) का इस्तेमाल किया जाता है, इन तरंगों की मदद से शरीर के अंदर की तस्वीरें निकाली जाती हैं। अल्ट्रासाउंड या सोनोग्राफी सुरक्षित स्कैन होते हैं, क्योंकि इनमें विकिरणों (Radiation) की जगह ध्वनि तरंगों या गूँज (Echoes) का इस्तेमाल किया जाता है।

अल्ट्रासाउंड की मदद से डॉक्टर शरीर में चीरा दिए बिना भी अंदरूनी अंगों, वाहिकाओं और ऊतकों आदि से संबंधित समस्याएं देख सकते हैं।

अन्य इमेजिंग टेस्टों से अलग अल्ट्रासाउंड में किसी भी प्रकार की विकिरणों का इस्तेमाल नहीं किया जाता। इसी वजह से अल्ट्रासाउंड को गर्भावस्था के दौरान विकसित हो रहे भ्रूण को देखने के लिए सबसे मुख्य तरीका माना जाता है। भ्रूण के विकास का मूल्यांकन करने के लिए अल्ट्रासाउंड स्कैन का उपयोग किया जाता है।

(और पढ़ें - गर्भावस्था में अल्ट्रासाउंड)

इसकी मदद से हृदय रोगगुर्दे के रोगलिवर रोग और पेट की समस्याओं का पता भी लगाया जा सकता है। कुछ निश्चित प्रकार की बायोप्सी करने के लिए भी अल्ट्रासाउंड की मदद ली जाती है।

अल्ट्रासाउंड एक सुरक्षित स्कैन होता है, जिसका व्यापक रूप से उपयोग किया जाता है। इसका उपयोग रोगों का परीक्षण करने या इलाज करने के लिए भी किया जाता है। अल्ट्रासाउंड के द्वारा निकाली गई तस्वीरों को 'सोनोग्राम' कहा जाता है।



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डीएनए टेस्ट - DNA Test in Hindi

आनुवंशिक परीक्षणों (Genetic testing) में डीएनए टेस्ट भी शामिल होता है। डीएनए एक केमिकल डाटाबेस होता है, जो शारीरिक कार्यों के अनुदेशों को सुरक्षित रखता है। जेनेटिक टेस्टिंग की मदद से जीन (Genes) के बदलावों का पता लगाया जा सकता है, जो किसी बीमारी या रोग का कारण बन सकते हैं।

जेनेटिक टेस्टिंग, आपके जीन की जांच करता है। जीन्स डीएनए के अनुदेश होते हैं, जो आपको अपने माता या पिता से मिलते हैं। जेनेटिक टेस्ट स्वास्थ्य जोखिमो से जुड़ी समस्याओं का पता लगा सकता है। यह टेस्ट उचित इलाज का चयन करने और यह जानने में मदद करता है कि संबंधित समस्या उपचार के प्रति कैसी प्रतिक्रिया दे सकती है। 

(और पढ़ें - लैब टेस्ट)



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एंडोस्कोपी - Endoscopy in Hindi

एंडोस्कोपी (Endoscopy) एक ऐसी परीक्षण प्रक्रिया होती है, जिसकी मदद से शरीर के अंदरूनी अंगों और वाहिकाओं आदि को देखा व उनको संचालित किया जाता है। शरीर के अंदरूनी अंगों को देखने के लिए इस प्रक्रिया में एक विशेष उपकरण का इस्तेमाल किया जाता है। इस उपकरण की मदद से शरीर के अंदर कोई बड़ा चीरा लगाये बिना ही अंदरूनी अंगों को देखा जा सकता है।



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इन्सुलिन टेस्ट - Insulin Test in Hindi

इन्सुलिन टेस्ट खून में इन्सुलिन के स्तर को मापता है। इन्सुलिन (Insulin) एक प्रकार का हार्मोन होता है, जो अग्न्याशय (Pancreas) द्वारा जारी किया जाता है। ग्लूकोज़ (शुगर) का संचार करने के लिए इंसुलिन काफी महत्वपूर्ण होता है। ग्लूकोज़ कोशिकाओं के लिए ऊर्जा का मुख्य स्रोत होता है। जैसे ही शुगर का स्तर बढ़ता है, इन्सुलिन का उत्पादन भी बढ़ने लगता है। यह ग्लूकोज के उपयोग को नियंत्रित करता है, यह प्रोटीन संश्लेषण (Protein Synthesis) और ट्राइग्लिसराइड स्टोरेज (Triglyceride storage) में भी शामिल है।

(और पढ़ें - शुगर का इलाज)

इंसुलिन का उत्पादन करने वाली अग्न्याशय कोशिकाएं नष्ट होने के कारण इंसुलिन की कमी हो जाती है और कमी के कारण टाइप 1 डायबिटीज (इंसुलिन पर निर्भर डायबिटीज) हो जाता है। टाइप 2 डायबिटीज (जो इन्सुलिन पर निर्भर नहीं होता) इन्सुलिन के काम में प्रतिरोध (Insulin Resistance) के कारण होता है। (और पढ़ें - शुगर का आयुर्वेदिक इलाज)

अग्नाशय के सेल ट्यूमर (Insulinoma) होने से भी रोगियों में इंसुलिन का स्तर बढ़ सकता है।

(और पढ़ें - अग्नाशयशोथ के उपचार)



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एसजीपीटी टेस्ट - SGPT Test in Hindi

एसजीपीटी टेस्ट खून में जीपीटी (GPT) की मात्रा को मापता है। जीपीटी (Glutamate Pyruvate Transaminase) पदार्थ एक प्रकार का एंजाइम (Enzyme) होता है, जो छोटी-छोटी मात्रा में शरीर के कई ऊतकों में पाया जाता है लेकिन अधिकतर मात्रा में यह लिवर में जमा होता है। जिन कोशिकाओं में यह जीपीटी जमा होता है, अगर वे क्षतिग्रस्त हो जाती हैं, तो यह एंजाइम खून में शामिल हो जाता है। इस एंजाइम को अलैनिन ट्रांसमिनेज (Alanine transaminase) या एएलटी (ALT) भी कहा जाता है।

(और पढ़ें - लैब टेस्ट क्या है)



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एक्स रे - X-ray in Hindi

एक्स-रे रेडियोलॉजी टेस्ट का एक प्रकार है जिसमें एक्स-रे की किरणें की मदद से शरीर के अंदरूनी अंगो की तसवीरें ली जाती हैं। एक्स-रे से किसी प्रकार का दर्द नहीं होती है, और आम तौर से सही तरीके से एक्स-रे करने से कोई हानि भी नहीं होती है (एक्स-रे से संबंधित जोखिम के बारे में नीचे बताया गया है)। 

तो आइये जानते हैं इसके बारे में -



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थायराइड फंक्शन टेस्ट - Thyroid Function Test in Hindi

थायराइड गर्दन क्षेत्र में स्थित एक ग्रंथि है। यह ग्रंथि थाइरोइड हार्मोन बनाती है और भोजन को ऊर्जा में परिवर्तित करती है। थायराइड के लिए टी 3, टी 3 आरयू, टी 4 और टीएसएच उपलब्ध होते हैं। तो आइये जानते हैं थायराइड फ़ंक्शन टेस्ट के बारे में -



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मैमोग्राफी - Mammography in Hindi

ब्रेस्ट कैंसर का पता लगाने के लिए मेमोग्राफी की जरूरत पड़ती है। यदि आपको ब्रेस्‍ट कैंसर की आशंका है और आपको अपने स्‍तनों में किसी भी प्रकार की कसावट या गांठ दिखे तो आपको तुरंत मैमोग्राफी करानी चाहिए। इस प्रक्रिया के दौरान दर्द नहीं होता है। तो आइये जानते हैं इस प्रक्रिया के बारे में विस्तार से - 



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ईसीजी - ECG in Hindi



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Homeopathic medicine, treatment and remedies for Back Pain

Back pain is a very common problem, which is reported by individuals of all age groups, regardless of gender. It is not a disease in itself but can be a symptom of other underlying medical conditions such as kidney stones, arthritis of the spine, and more. Pain experienced in the back region could range from a sharp to a dull ache, which radiates down the leg or may extend up to shoulders. In some cases, pain may only shoot up when the person bends down or moves. In most cases, back pain symptoms get better on taking rest.

Back pain may arise due to muscle strain or ligament strain while doing some kind of physical activity. Injury to the vertebral discs or the backbone may also trigger back pain. Other causes of back pain include arthritis, skeletal diseases, and osteoporosis. Back pain tends to be common in the elderly. Factors such as obesity, lack of physical activity, improper body posture, and presence of psychological conditions such as depression and anxiety tend to increase the likelihood of developing back pain.

In most cases, back pain resolves itself within a few hours or a few days. However, if the underlying cause is serious, then more aggressive medical intervention is required. It is usually diagnosed with the help of imaging tests such as X-rays.

Homeopathic remedies such as Bryonia Alba, Dulcamara, and Nux Vomica are well studied for treating pain and alleviating the root causes of back pain. 

 


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