Wednesday, March 6, 2019

सीए 15.3 टेस्ट - CA 15.3 (Breast Cancer Marker, Serum)

परिचय

सीए 15-3 एक प्रकार का प्रोटीन होता है, जो स्तन के ऊतकों का सामान्य उत्पाद होता है। सीए 15-3 प्रोटीन स्तन कैंसर का कारण नहीं बनता है। लेकिन अगर स्तन में कैंसर युक्त ट्यूमर विकसित हो गया है, तो कोशिकाओं के साथ-साथ सीए 15-3 का स्तर भी बढ़ जाता है। सीए 15-3 एक प्रकार का एंटीजन या एक ऐसा पदार्थ होता है जो शरीर की प्रतिरक्षा प्रणाली को उत्तेजित करता है। कुछ प्रकार की कैंसर कोशिकाएं सीए 15-3 एंटीजन को खून में स्त्रावित कर देती हैं। 

सीए 15-3 का इस्तेमाल ट्यूमर मॉनिटर के रूप में किया जाता है। इसका उपयोग आमतौर पर ब्रेस्ट कैंसर के रोगी की प्रतिक्रिया और कैंसर फिर से होने आदि जैसी स्थितियों का पता लगाया जाता है।

सीए 15-3 का सामान्य स्तर क्या है?

सीए 15-3 की सामान्य सीमा 30 यू/एमएल से कम होती है। इसकी ऊपरी सीमा लेबोरेटरी और टेस्ट करने के लिए किस प्रकार की किट का इस्तेमाल किया जाता है इस पर निर्भर करती है। अलग-अलग किट, तरीकों व लेबोरेटरी से निकाले गए स्तर के मान को एक दूसरे की जगह पर इस्तेमाल नहीं किया जा सकता है।

(और पढ़ें - स्तन कैंसर की सर्जरी)



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सीए 125 टेस्ट - CA 125 Test in Hindi

सीए (CA) का मतलब कैंसर एंटीजन (Cancer antigen) होता है। सीए 125 खून में पाया जाने वाला एक प्रोटीन होता है। विशेष रूप से सीए 125 शरीर के अन्य हिस्सों के मुकाबले ओवेरियन (अंडाशय/डिम्बग्रंथि) कैंसर की कोशिकाओं में अधिक मात्रा में पाया जाता है। सीए 125 की पहचान 1980 के दशक की शुरुआत में की गई थी और शरीर में इसके महत्व व कार्यों के बारे में अब तक पता नहीं चल पाया है। सीए 125 के स्तर को मापने के लिए सीए 125 टेस्ट किया जाता है, जो एक सामान्य खून टेस्ट की तरह किया जाता है।

(और पढ़ें - सीआरपी ब्लड टेस्ट क्या है)



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एल्बुमिन टेस्ट - Albumin Test

परिचय:

प्रोटीन खून में पाया जाने वाला एक पदार्थ है, जो खून के माध्यम से ही आपके पूरे शरीर में सर्कुलेट होता हैं और शरीर में तरल का संतुलन बनाने में मदद करता हैं। यह खुद ही एक प्रकार का प्रोटीन होता है, जिसे लिवर द्वारा बनाया जाता है। गौरतलब है कि एल्बुमिन खून में सबसे अधिक मात्रा में पाया जाने वाला प्रोटीन होता है। 

एल्बुमिन भी शरीर में तरल पदार्थों का संतुलन बनाए रखने में मदद करता है। यह रक्त वाहिकाओं में अधिक रिसाव होने से रोकथाम करता है। इसके अलावा यह ऊतकों को स्वस्थ बनाने और महत्वपूर्ण हार्मोन व पोषक तत्वों को शरीर में पहुंचा कर शरीर के बढ़ने में भी महत्वपूर्ण भूमिका निभाता है । 

जब किसी समस्या के कारण लिवर की एल्बुमिन बनाने की क्षमता प्रभावित हो जाती है, तो एल्बुमिन का स्तर कम या बहुत अधिक कम हो जाता है। इसके अलावा प्रोटीन का अवशोषण बढ़ने, प्लाज्मा की मात्रा बढ़ने या किडनी संबंधी समस्याओं के कारण प्रोटीन कम होने लगना आदि जैसी समस्याओं के परिणामस्वरूप भी एल्बुमिन का स्तर कम होने लगता है।

(और पढ़ें - लिवर खराब होने के लक्षण)



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सीडी 4 टेस्ट - CD4 Test in Hindi

परिचय

खून में सीडी 4 टेस्ट एक ऐसा टेस्ट है, जो यह बताता है कि खून में कितनी मात्रा में सीडी 4 कोशिकाएं मौजूद हैं। सीडी 4 कोशिकाएं एक प्रकार की रक्त कोशिकाएं होती हैं। इन्हें टी कोशिकाएं (T cells)  भी कहा जाता है। ये कोशिकाएं खून के माध्यम से आपके पूरे शरीर में घूमती हैं और बैक्टीरिया, वायरस व अन्य रोगाणुओं को नष्ट करती हैं। 

ये कोशिकाएं रोगों से लड़ती हैं। लिम्फोसाइट एक प्रकार की सफेद रक्त कोशिका होती है, जिसकी दो श्रेणियां होती हैं टी कोशिका (T cells) और बी कोशिका (B cells)। टी कोशिकाएं वायरल इन्फेक्शन से लड़ती है और प्रतिरक्षा प्रणाली को बढ़ाती है, जबकि बी कोशिकाएं बैक्टीरियल इन्फेक्शन से लड़ती है। 

कभी-कभी शरीर में सीडी 4 कोशिकाओं की मात्रा बहुत ज्यादा या बहुत कम हो जाती है। इसका मतलब होता है कि आपकी प्रतिरक्षा प्रणाली ठीक से काम नहीं कर पा रही है। 

यदि आप एचआईवी से ग्रस्त हैं, तो असरदार एंटीवायरल ट्रीटमेंट लेकर आप अपना सीडी 4 कोशिकाओं की संख्या सामान्य रख सकते हैं और एचआईवी के लक्षणों व उससे होने वाली अन्य समस्याओं को कंट्रोल में रख सकते हैं साथ ही लंबे समय तक जीवन जी सकते हैं।

अध्ययन के द्वारा यह पता चला है कि एचआईवी से ग्रस्त जो व्यक्ति नियमित रूप से अपने उपचार करवाते हैं, वे एक स्वस्थ व्यक्ति (जो एचआईवी से ग्रस्त नहीं हैं) की तरह जीवन जी सकते हैं।

कुछ लोगों में सीडी 4 कोशिकाओं की संख्या बहुत कम होती है। ऐसे लोगों को एंटीवायरल दवाओं के साथ-साथ कुछ विशेष प्रकार की दवाएं लेने की आवश्यकता पड़ सकती है, जो कुछ विशेष प्रकार के संक्रमणों की रोकथाम करती हैं। जब एंटीवायरल दवाओं की मदद से सीडी 4 कोशिकाओं की संख्या बढ़ जाती है।

(और पढ़ें - लिम्फोमा के लक्षण)



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मनोवैज्ञानिक परीक्षण - Psychological Testing in Hindi

परिचय

“मनोवैज्ञानिक परीक्षण” (साइकोलॉजिकल टेस्टिंग) टेस्टों की एक ऐसी श्रंखला या सीरीज होती है जिसमें कई प्रकार के “मनोवैज्ञानिक टेस्ट” (साइकोलॉजिकल टेस्ट) किये जाते हैं। ये टेस्ट विशेष रूप से किसी व्यक्ति में उसके व्यवहार की जांच करते हैं, जिसे “सेंपल ऑफ बिहेवियर” कहा जाता है। जब किसी व्यक्ति को कोई काम दिया जाता है, तो उस काम पर व्यक्ति के प्रदर्शन को व्यवहार का सेंपल या उदाहरण कहा जाता है। व्यवहार के कुछ सेंपल ऐसे टेस्ट के द्वारा प्राप्त किये जाते हैं जिनमें मरीज को कुछ लखना-पढ़ना होता है। ये मनोवैज्ञानिक परीक्षण के सबसे आम टेस्टों में से हैं। टेस्टों में मरीज से पेंसिल और पेपर से काम करवाया जाता है, जिससे मनोवैज्ञानिक परीक्षण के परिणाम निकाले जाते हैं। 

(और पढ़ें - मनोचिकित्सा क्या है)

ऐसा माना जाता है कि अच्छी तरह से किया गया टेस्ट व्यक्ति की मनोवैज्ञानिक रचना को दर्शाता है, जैसे स्कूल के किसी विषय में प्रदर्शन, संज्ञानात्मक क्षमता, योग्यता, भावनात्मक और व्यक्तित्व स्थिति आदि। टेस्ट के रिजल्ट में किसी प्रकार का बदलाव, मरीज की मनोवैज्ञानिक रचना में बदलाव दर्शाता है। हालांकि जिस मनोवैज्ञानिक रचना का टेस्ट किया गया है उसी के बदलाव का पता लगाया जा सकता है। मनोवैज्ञानिक परीक्षण के पीछे के विज्ञान को “साइकोमेट्रिक्स” (Psychometrics) कहा जाता है।

(और पढ़ें - मानसिक रोग के लक्षण)



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एलिसा टेस्ट - ELISA Test in Hindi

एलिसा टेस्ट के द्वारा यह पता लगाया जाता है, कि शरीर की प्रतिरक्षा प्रणाली सूक्ष्म रोगाणुओं के प्रति क्या प्रतिक्रिया कर रही है। इस टेस्ट के द्वारा प्रतिरक्षा प्रणाली में उपस्थित केमिकल व अन्य तत्वों की जांच की जाती है। एलिसा टेस्ट में एक एंजाइम होता है (एक प्रोटीन जो बायोकेमिकल रिएक्शन को बढ़ाता है)।

एलिसा टेस्ट की मदद से शरीर में एंटीबॉडीज या एंटीजन की जांच की जाती है। एंटीबॉडीज शरीर की प्रतिरक्षा प्रणाली द्वारा किसी रोग या संक्रमण से लड़ने के लिए बनाए जाते हैं और एंटीजन एक बाहरी पदार्थ होता है तो प्रतिरक्षा प्रणाली को संक्रमण या रोगों के खिलाफ उत्तेजित (जैसे एंटीबॉडीज बनाने के लिए उत्तेजित करना) करता है।

(और पढ़ें - बैक्टीरियल संक्रमण के लक्षण)

आगे इस लेख में आपको एलिसा टेस्ट के बारे में बताया जा रहा है। आप जानेंगे कि एलिसा टेस्ट को कब, क्यों और कैसे किया जाता है, और साथ ही इसका खर्च कितना होता है। आप यह भी जानेंगे कि इस टेस्ट से पहले क्या तयारी करनी होती है और एलिसा टेस्ट के बाद सावधानियां क्या बरतनी होती है। 



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प्रोलैक्टिन परीक्षण - Prolactin Test in Hindi

प्रोलैक्टिन एक हार्मोन होता है जो मस्तिष्क में स्थित पिट्यूटरी ग्रंथि के द्वारा बनाया जाता है। जब कोई महिला गर्भवती होती है या जब शिशु को जन्म देती है, तो उनके प्रोलैक्टिन हार्मोन का स्तर बढ़ जाता है। प्रोलैक्टिन का स्तर बढ़ने से महिलाओं के स्तनों में दूध बनने लगता है। यदि आप गर्भवती नहीं हैं और यहां तक कि अगर आप पुरुष हैं, तो भी प्रोलैक्टिन का स्तर बढ़ जाना संभव होता है। 

(और पढ़ें - माँ का दूध बढ़ाने के तरीके)

यह हार्मोन पुरुषों व महिलाओं दोनों के प्रजनन स्वास्थ्य के लिए जरूरी होता है। किसी व्यक्ति के खून में प्रोलैक्टिन के स्तर की कम या ज्यादा मात्रा उसकी प्रजनन क्षमता को प्रभावित भी कर सकती है। इस बात की स्पष्ट जानकारी नहीं है कि पुरुषों में प्रोलैक्टिन के मुख्य काम क्या होते हैं। हालांकि प्रोलैक्टिन परीक्षण का उपयोग पुरुषों और महिलाओं दोनों में यौन संतुष्टि को मापने के लिए किया जाता है। हार्मोन के कारण होने वाली अन्य समस्याओं का पता लगाने के लिए भी प्रोलैक्टिन परीक्षण की मदद ली जा सकती है। 

खून के सेंपल में प्रोलैक्टिन के स्तर की जांच करने के बाद डॉक्टर समस्या के लिए संभव इलाज का सुझाव दे सकते हैं। 

(और पढ़ें - यौन शक्ति बढ़ाने के उपाय)



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